|| रावण-कुल के लोग ||
(लम्बी तेवरी-तेवर-शतक)
+रमेशराज
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+बिना पूँछ बिन सींग के पशु का अब सम्मान
मंच-मंच पर ब्रह्मराक्षस चहुँदिश छायें भइया रे! 1
+तुलसिदास ऐसे प्रभुहिं कहा भजें भ्रम त्याग
अनाचार को देख न जो तलवार उठायें भइया रे! 2
+अब असुरों का पार नहिं ऐसा है फैलाव
खल बल-दल के साथ यहाँ उत्पात मचायें भइया रे! 3
+खल को कहते संत अब चैनल या अखबार
बुद्धिहीन हम लोग खलों को शीश नबायें भइया रे! 4
+माया-मृग के जाल में उलझा दिया अवाम
पर्णकुटी पै खडे़ दसानन अब मुस्कायें भइया रे! 5
+सभा-सभासद मौन सब दुष्ट लूटते लाज
कान्हा भी अब द्रौपदि को लखि तैश न खायें भइया रे!6
+गौतम तिय की याद कर और समझि श्रीराम
भगवा वसनी के पग जोगिन छूती जायें भइया रे! 7
+संत-अंक में सुख चहें ईश-अंक तजि नारि
नित छलिया कंठीधारी को नारि रिझायें भइया रे! 8
+चोर शाह को अब पकड़ झट थाने लै जाय
थानेदार चोर के सँग में जाल बिछायें भइया रे! 9
+चलइ जोंक जल वक्रगति जद्यपि सलितु समान
खल सज्जन सँग कुटिल चाल से बाज न आयें भइया रे! 10
+अबला के रक्षार्थ जिन गीधराज-सी मौत
ऐसे बलिदानी ही जग में नाम कमायें भइया रे! 11
+तुलसी निर्भय होत नर सत्ता-कुर्सी बैठि
जनता जिनको चुने आज वे ही गुर्रायें भइया रे! 12
+ऐसे मानुष अधम-खल दिखते कलियुग बीच
एक देश को लूट दूसरा लूटन जायें भइया रे! 13
+कामकला की पूर्ति-हित जड़हि करें चेतन्य
राम आज के संग अहल्या रास रचायें भइया रे! 14
+काम केलि नित जो करें नगर-वधू के संग
ऐसे साधु अखण्ड ब्रह्मचारी आज कहायें भइया रे! 15
+नाम ललित, लीला ललित,
ललित संत के अंग
धर कान्हा का रूप गोपियाँ नित्य रिझायें भइया रे! 16
+परमानंद कृपाय तन मन परिपूरन काम
यही सोच तस्कर नेता को मीत बनायें भइया रे! 17
+अँगरेजी से मोह अति, गोरों से अनुराग
हिन्दी को अब हिन्दुस्तानी हीन बतायें भइया रे! 18
+लरिकाई कौ पैरिबो तुलसी अब भी याद
आँख लड़ाते हुए वृद्धजन गंग नहायें भइया रे! 19
+रावण-कुल के लोग हैं इनको बदी सुहाय
ये कपोत लखि तान गिलोलें मन हरषायें भइया रे! 20
+सूधे मन सूधे वचन सूधी हर करतूत
कलियुग में ऐसे सब ज्ञानी मूढ़ कहायें भइया रे! 21
+बन्धु बधूरत कह कियौ बचन निरुत्तर बालि
किन्तु यही सुग्रीव किया तो प्रभु मुस्कायें भइया रे!
22
+काम-कला में लिप्त जो जिनके मन धन-लोभ
भगवा वसन पहन वैरागी जग भरमायें भइया रे! 23
+जो नहिं देखा, नहिं सुना जो मन हू न समाय
ऐसे चमत्कार कर ढोंगी मौज उड़़ायें भइया रे! 24
+अपनी पूजा देखकर मन हरषैं अति काग
स्वाभिमान के धनी हंस अब ठोकर खायें भइया रे! 25
+भजन करें अब संत यौं-‘माया-पति भगवान’
हरषैं उनको देख दान जो लोग चढ़ायें भइया रे! 26
+हर मुश्किल नर छूटता कर-कर मंत्री-जाप
सब चमचे अब मंत्री को भगवान बतायें भइया रे! 27
+कल अनेक दुख पायँ नर, सिर धुनि-धुनि पछितायँ
अगर विदेशी व्यापारी को देश बुलायें भइया रे! 28
+चढें अटारिन्ह देखहीं नगर-नारि नर-वृन्द
हाथ जोड़कर जब बस्ती में नेता आयें भइया रे! 29
+परमानंद प्रसन्न मन क्यों हो पुलकित गात
जब पश्चिम की वायु विषैली चहुंदिश छायें भइया रे!
30
+यह कलिकाल कुरंग तन चन्दन-लेप लगाय
असुर संत-से जग को मूरख विहँस बनायें भइया रे! 31
+अभय किये सारे असुर कृपा-दृष्टि करि वृष्टि
अजब आज के राम जिन्हें अब खल ही भायें भइया रे! 32
+काटे सिर भुज बार बहु मरत न भट लंकेश
इसकी नाभि बसा अमृत, नहिं वाण सुखायें भइया रे! 33
+जनता का पी खून नित मसक उड़ैं आकाश
कछुआ-छाप अगरबत्ती अब काम न आयें भइया रे! 34
+महा अजय संसार रिपु जीति सकै सो वीर
कर-कर युद्ध पछाड़ो इनको भाग न जायें भइया रे! 35
+नश्वर रूपा जगत ये सब जानत यह बात
दीपक-दीपक रीझि पतंगे प्राण गँवायें भइया रे! 36
+मैं देखूँ खल बल दलहिं इन पर करूँ प्रहार
इस साहस से भरी हुई आवाज न आयें भइया रे! 37
+नेता माँगे कोटि घट मद अरु महिष अनेक
अजगर जैसे निशदिन अपने मुँह फैलायें भइया रे! 38
+आज कौन-सी औषधी लाओगे हनुमान
सच के वाण लगा है छल का, सब घबरायें भइया रे! 39
+रुधिर गाड़ भरि-भरि जमै ऊपर धूरि उड़ाय
हँसती बस्ती में जेहादी जब भी आयें भइया रे! 40
+एक न एकहिं देखहीं जहँ-जहँ करत पुकार
बम की दहशत ऐसी फैली सब चिल्लायें भइया रे! 41
+खाहिं निशाचर दिवस निशि जनता को रख गोद
इसे ‘सुराज’ आज मनमोहन विहँस बतायें भइया रे! 42
+ते नर सूर कहावहीं अरे समझि मतिमंद
दीन और निर्बल का जो बल बन दिखलायें भइया रे! 43
+जिनने जन-शोषण किया दिये चराचर झारि
वही विदेशी अब सबके मन बेहद भायें भइया रे! 44
+ये जन पालईं तासुहित हम सब डालें वोट
लेकिन नेता बैठ सदन में जन को खायें भइया रे! 45
+रावण-सभा सशंक सब देख महारस भंग
अखबारों में ऐसे सच पर नजर न आयें भइया रे! 46
+आज पापियों के हृदय चिन्ता सोच न त्रास
ये जेहादी पल में जन के शीश उड़ायें भइया रे! 47
+‘नारि पाइ घर जाइये समझो हुआ न ‘रेप’
थानेदार नारि-परिजन को अब समझायें भइया रे! 48
+बांधें वननिधि नीरनीधि जलधि सिन्धु वारीश
नेता हमको विश्वबैंक का दास बनायें भइया रे! 49
+खल छाती पर पैर रख चढ़ि-चढ़ि पारहिं जाहिं
‘पुल’ जैसे भावों को लेकर जब हम आयें भइया रे! 50
+आज कहो नल-नील से रचें प्रेम का सेतु
सागर मद में चूर दूर तक फन फैलायें भइया रे! 51
+सत्ता छोड़ो
राम कहि अहित न करौ हमार
जन-जन उनको गद्दी देकर अब चिल्लायें भइया रे! 52
+कलि-मल ग्रासे धर्म सब लुप्त भये सदग्रन्थ
पापीजन आतंकवाद को धर्म बतायें भइया रे! 53
+भये लोग सब मोह-वश लोभ ग्रसे शुभ पन्थ
जो वर्जित हैं काम वही अब पूजे जायें भइया रे! 54
+अशुभ वेश, भूषण धरें
मछामच्छ जे खांहिं
अपने को वे संत, अहिंसक आज बतायें भइया रे! 55
+मान मोह मारादि मद व्यापि रहे ब्रह्माण्ड
साधु-संत भी गनरों के सँग करें सभायें भइया रे! 56
+बारि मथे घृत होत बरु, सिकता ते बरु तेल
ऐसे चमत्कार कर ढोंगी ठगी बढ़ायें भइया रे! 57
+श्री-मद वक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि
नेता जितने भी चुन-चुन कर संसद जायें भइया रे! 58
+व्यापि रहे ब्रह्मांड में माया के विद्रूप
दम्भ-कपट-पाखण्ड सभी के मन मुस्कायें भइया रे! 59
+सोइ-सोइ भाव दिखाबईं आपुन होय न जोइ
नेता मगरमच्छ सम आँसू आज बहायें भइया रे! 60
+काम-क्रोध-मद-लोभ रत, नारी पर आसक्त
सन्यासी ऐसे ही जग में आज कहायें भइया रे! 61
+फल की खातिर पेड़ को काटि करें अपराध
अपने इस कुकर्म पर नेता कब शरमायें भइया रे! 62
+सूधे-टेडे़ सम-विषम सब हों बारहबाट
अमरीका सँग झूम-झूम जो मौज उड़ायें भइया रे! 63
+मिली आँख कब आँधरे, बाँझ पूत कब पाय
मंदिर-मस्जिद चाहे जितना शीश नवायें भइया रे! 64
+मांगि मधुकरी खात सब, सोवत गोड़ पसार
लोग आज परजीवीपन को श्रेष्ठ बतायें भइया रे! 65
+बेंत फूल नहिं देत है सींचो बारम्बार
दुष्ट लोग करुणामय होकर कब नरमायें भइया रे! 66
+समरथ पापी बैर कर मत ले आफत मोल
हर पापी को थाने वाले संग बिठायें भइया रे! 67
+नगर, नारि, भोजन, सचिव, सेवक, सखा, अगार
बिन दौलत अब नम्र रूप ये कब दिखलायें भइया रे! 68
+तुलसी पहने जो वसन उन्हें उतारै नारि
फैशन-शो में देख नर्तकी सब ललचायें भइया रे! 69
+सुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनि बात
सच्चे ईश्वर-भक्त आजकल नज़र न आयें भइया रे! 70
+हरौ धरौ धन या गड़ौ लौटि न आबै हाथ
धन के लोभी और लालची दुःख ही पायें भइया रे! 71
+तुलसी चाहत साधु बनि अभिनंदन सम्मान
इसीलिए कलियुग में सब ठग जटा रखायें भइया रे! 72
+तुलसी ‘होरी’ खेत में गाड़े बढ़ौ अनाज
फसल पकी तो सूदखोर सब लूटन आयें भइया रे! 73
+तुलसी असमय के सखा धीरज-धर्म-विवेक
पर कलियुग में लोगों को ये बात न भायें भइया रे! 74
+लाभ समय को पालिबौ, हानि समय की चूक
यही सोच पश्चिम के गीदड़ दौड़ लगायें भइया रे! 75
+अंक गये कछु हाथ नहिं, अंक रहे दस दून
पापी अबला नारी को पल-पल समझायें भइया रे! 76
+तुलसी अलखहि का लखें, कहा सगुन सों सिद्ध
जप-तप-दर्शन बुरे समय में काम न आयें भइया रे! 77
+केवल कुर्सी-सिद्धि को रामभक्त का वेश
अब बगुले नेता बन जायें, गद्दी पायें भइया रे! 78
+तुलसी अपने देश में जन-रोटी पर चोट
अफसर, नेता या पूंजीपाति
माल उड़ायें भइया रे! 79
+द्वार दूसरे दीन बनि और पसारे हाथ
विश्वबैंक से लेन उधारी नेता जायें भइया रे! 80
+जल भी बैरी मीन का घातक इसका संग
यही सोचकर आज मछलियाँ मन अँकुलायें भइया रे! 81
+नेता रूखे निबल-रस, चिकने सबल सनेह
इनकी खातिर गढ़नी होंगी अग्नि-ऋचाएं भइया रे! 82
+मूँड़ मुड़ाकर-भाँड़ बन, वे दें अब घर त्याग
जिन्हें बिना श्रम रोट भीख के आज सुहायें भइया रे!
83
+अन्त फजीहत होय अति, हो गणिका आसक्त
नगरवधू पर घर-धन-दौलत लोग लुटायें भइया रे! 84
+स्वार्थपूर्ति के हेतु ही रीझें और रिझाइँ
लोग आजकल मतलब से सम्बन्ध बनायें भइया रे! 85
+खर-दूषन-मारीच-से खल दल-बल के साथ
सज्जन को लखि करें ठिठोली, शोर मचायें भइया रे! 86
+तुलसी बस हर पल लगै भली चोर को रात
अंधियारे के बीच निशाचर सैंध लगायें भइया रे! 87
+कलियुग में जल-अन्न भी महँगाई के संग
इनका कर व्यापार लोग अब दाम बढ़ायें भइया रे! 88
+ज्यों गोबर बरसात के ऐसे मन से लोग
पर अपने को कह ‘महान’ हुलसें-इतरायें भइया रे! 89
+उदासीन सबसों सरल तुलसी सहज सुभाउ
यही सोच खल से टकराने सब घबरायें भइया रे! 90
+गल कठमाला डालकर, पहन गेरुआ वस्त्र
रस-रागी, नारी-तन-भोगी योग
सिखायें भइया रे! 91
+बाधक सबसे सब भये साधक दिखे न कोय
नाटक कोरी हमदर्दी का लोग दिखायें भइया रे! 92
+जीवन में संघर्ष जब, हर कोई बेचैन
काम न आयें कामकलाएँ, प्रेम-कथायें भइया रे! 93
+लुप्त हुई करुणा-दया केवल दण्ड-विधान
नौकरशाह आज जनता को मारें-खायें भइया रे! 94
+चोर चतुर बटमार नट प्रभु-प्रिय भँडुआ भंड
पुरस्कार की लिस्ट बने तो ये ही छायें भइया रे! 95
+वक-भक्षण मोती रखें अब सब हंस बिडारि
कबूतरों को छोड़ बाज को लोग चुगायें भइया रे! 96
+रति खतरे में जब पड़ी घायल हर शृंगार
ऐसे में हम लिखें तेवरी, ग़ज़ल न भायें भइया रे! 97
+कोटि भाव समझावऊ मन न लेइ विश्राम
है शोषण का ताप हृदय में चैन न पायें भइया रे! 98
+तुलसी कैसा दौर ये, कैसा जग का मान
हंस नहीं अब बगुले कलियुग विद्व कहायें भइया रे! 99
+तुलसी पावस के समय धारि कोकिला मौन
राजनीति के सारे दादुर अब टर्रायें भइया रे! 100
+कायर कूर कपूत कलि घर-घर इनकी बाढ़
मात-पिता बहिना-भाई पर ये गुर्रायें भइया रे! 101
+प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम-राम जपि राम
राजनीति की अब दुकानें लोग चलायें भइया रे! 102
+ऐसी अपनी तेवरी हर तेवर दो छंद
जिनमें तुलसी की दोहावलि की छवि पायें भइया रे! 103
+खल उपकार विकार फल तुलसी जान जहान
तेवरियां लिख हम जनता को अब समझायें भइया रे! 104
.........................................................................
+ रमेशराज
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