मेरी कृतियाँ

Thursday, 18 February 2016

( ककड़ी के चोरों को फाँसी ) || प्रचलित लोककथनों पर आधारित-लम्बी तेवरी--तेवर-शतक ||

( ककड़ी के चोरों  को फाँसी )
|| प्रचलित लोककथनों पर आधारित-लम्बी तेवरी--तेवर-शतक ||
-रमेशराज
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+हर तेवर लोकोक्तिसुहाये, शब्दों के भीतर तूफान
अपने घर को फूंक तमाशा हुए देखने हम तैयार, क्या समझे!! 1
+दही जमेगा, घी निकलेगा, जब ले लेगा दूध उफान
लिये बाल्टी लोककथनकी काढ़ें हम गइया की धार , क्या समझे!! 2
भानुमती का जैसे कुनबा चना मटर सँग गेंहू धान  
कुछ चुन, कुछ गढ़ नयी कहावत’ ‘तेवर-शतककिया तैयार, क्या समझे!!
+‘फैलुन-फैलुन फाके बदले हम लाये आल्हा की तान
हर तेवर दो-दो तुकांत-क्रम जिनमें दिखे दुधारी  मार, क्या समझे!! 4
+क्रन्दन को कहना आलिंगन होगा लोगों को आसान
उसे ग़ज़ल हम कैसे कह दें जिसमें भालों की बौछार, क्या समझे!! 5
+निकले सर पर कफन बाँधकर फौलादी सीने को तान
लिख पाये इसलिए तेवरी अपने सोचोंमें अंगार, क्या समझे!! 6
+मुँह गाली देता है लेकिन थप्पड़ खाय विचारा कान
कोई पापी दण्ड किसी को, माँ कपूत का भरे उधार, क्या समझे!! 7
+हम कोल्हू के बैल सरीखे लिये अमिट अब पांव थकान 
खुर टूटे अरु दांत गिरे सब, कंधे बोझे को लाचार, क्या समझे!! 8
+काले अक्षर भैंस बराबर जुटे साक्षरता अभियान
मंन्त्री बनकर मार रहे हैं पढ़े-लिखों को जूते चार, क्या समझे!! 10
+हम महान हैं इसीलिए तो अपनी है हर बहस महान
हम कर रहे ब्याह से पहले यारो गौने पर तकरार, क्या समझे!! 11
+ब्रह्मचारियों का अनशन से बढ़ता मान और सम्मान  
आलू सौ बच्चों का भालू क्या समझेगा इसका सार, क्या समझे!! 9
+खुद को नहीं सिर्फ औरों को अपने हैं सारे व्याख्यान
नाइन पाँव सभी के धोती खुद के पाँव मैल-अम्बार, क्या समझे!! 12
+तर्कहीन बहसों के बदले ज्ञानी से बस पाओ ज्ञान
किसी तरह से भला नहीं है चलते बैल मारना आर, क्या समझे!! 13
+सौ-सौ चूहे खाय बिलइया अब चाहे गंगा-स्नान
अब हर एक लुटेरे पर है दानवीरका भूत सवार, क्या समझे!! 14
+करे न रक्षा वो औरों की थर-थर जिसके काँपें प्रान
चून माँगकर पेट भरे जो, वो क्या भात भरेगा यार, क्या समझे!! 15
+उल्टे चलन जगत के देखे नीरस मिले आज रसखान
भरे समन्दर घोंघा प्यासा, प्रेम-बीच पसरी तकरार, क्या समझे!! 16
+हम सुख को सुख तब ही मानें अधरों तक आये मुस्कान
माह न जाड़ा, पूस न जाड़ा, तब जाड़ा जब शीत बयार, क्या समझे!! 17
+घुटना घुटने को झुकता है, दयावान को ही दुःख-ज्ञान
घर आये बेटे की मइया आँत टोहती नजर उतार, क्या समझे!! 18
+अभी न दाँत दूध के टूटे, बेटा सबके काटे कान
बचपन में ही दीख रहे हैं सुत के पाँव महल के पार, क्या समझे!! 19
+पढ़े-लिखे को कहा फारसी, क्या पण्डित को ज्योतिष-ज्ञान?
पैनी तो पत्थर में पैनी, क्या तैरा को नदिया-पार, क्या समझे!! 20
+लोग हँसें रख हाथ मुखों पर नंगे के सुनकर व्याख्यान
फाँके सतुआ लेकिन बोले मथुरा में करना भण्डार’, क्या समझे!! 21
+सबको राह बताते फिरते जो हैं राहों से अन्जान
कूँए के मेंढ़क समझाते मिले हमें सागर का सार, क्या समझे!! 22
+पाँवों में जब काँटे टूटे तो आया जूतों का ध्यान
आग लगी तो कुआ खोदने झटपट दौड़ा यह संसार, क्या समझे!! 23
+घर के भीतर धम्मक-धम्मा मीयाँ-बीबी कठिन निभान
धरी लुगइया कभी न करियो, करियो ठीक-ठिकानेदार, क्या समझे!! 24
+अपना खाना और कमाना, अपनी ढपली-अपनी तान
अपने ही रँग रँगे हुए सब, अब समूह का त्याग विचार, क्या समझे!! 25
+टूटी दाढ़ बुढ़ापा आया, टाँग कापतीं, बहरे कान
गये जवानी फीका लगता सारा का सारा संसार, क्या समझे!! 26
+नंग चोर छिनरा ज्वानी के करें बुढ़ापे ईश्वर-ध्यान
सारे पाजी बनते काजी वृद्ध अवस्था सोच-विचार, क्या समझे!! 27
+पाँव न जानें कान पकड़ना, पकड़ें सदा हाथ ही कान
काँटे को झट सुई निकाले, हाथ न ली जाये तलवार, क्या समझे!! 28
+नोटों-भरी अटैची यारो देख विहँसता पुष्प समान
नेता हो पानी से पतला हर दल बहने को तैयार, क्या समझे!! 30
+बिन बादल के कौंधे बिजली, आसमान से गिरे फुहार, क्या समझे!! 31
+जयचंदों ने करीं बधिक की सारी तरकीबें आसान
चिडि़याएँ दाने को देखें, नहीं जाल पर करें विचार, क्या समझे!! 32
+मंत्री बचे, लुटे सब जनता, रखे पुलिस बस इतना ध्यान
खड़े देखते ट्रेन-डकैती गार्ड सिपाही थानेदार, क्या समझे!! 33
+बलशाली को अति बलशाली पल में दिखता बाप समान
देख शिकारी फौरन भागे, कुंजर-जंगल का सरदार, क्या समझे!! 34
+केवल अधिकारों की बातें खुदगर्जी इस युग की शान
खाने को तो शेर सरीखे और कमाने अजगरदार, क्या समझे!! 35
+दुःखी नाक की पीर न पूछें होकर नाक पड़ोसी कान
सने हुए हाथों के यारो पाँव बने कब धोबनहार, क्या समझे!! 36
+लुटें गोपियाँ उसके सम्मुख वो ही अर्जुन वही कमान
समय-समय के फेर बाज पै झपट करे है बगुला वार, क्या समझे!! 37
+राजनीति में नकटे-बूचे लुच्चे-छिनरे नंग महान
देखा जिन्हें चाटते तलुवे, बने फिरें वे अति खुद्दार, क्या समझे!! 38
+साथ भला कुण्डी-किबाड़ का, ज्ञानी के सँग बुद्धि महान
 विष ही घोलेगा जीवन में यारो मधुशाला का यार, क्या समझे!! 39
+औरों के धन को डकारकर ऐंठे उजले भृकुटी तान
उजलों से कंजरिया अच्छी लौटा देती लिया उधार, क्या समझे!! 40
+खाते वाले चलन न होते करुणा और दया की खान
 बिन मतलब के चिरी अँगुरिया क्यों कर मूतन लगा सुनार, क्या समझे!! 41
+हर पल वाद-विवाद मिलेगा भौंडे़ राग-बेसुरी तान
जिस घर भी हों तेरह चूल्हे, नहीं मिलेगा उस घर प्यार, क्या समझे!! 42
+यही सोच शोषण जनता का नेता करता सरल विधान
 नीबू और आम के मसके फूट पड़े पल में रस-धार, क्या समझे!! 43
+देख दरोगा पूरा तोले दाँत निपोरि सभी सामान
वही कहावत पुनः सिद्ध है-‘बनिया होय दबे का यार’, क्या समझे!! 44
+हम महान हैं तभी हमारे होते सारे प्रश्न महान
बाल कटाते पूछ रहे हैं-‘सर के ऊपर कितने बार’, क्या समझे!! 45
+हल्का करने हेतु काम को जगह-जगह बाँटें विद्वान
सर पर बोझ, पिराये गर्दन, कंधों पर लो उसे उतार, क्या समझे!! 46
+बहरा कहे सुनायी देता, अंधा जग का करे बखान
राग-ताल जो गीत न जाने, घूम रहा है लिये सितार, क्या समझे!! 47
+न्योते बामन खायें ना छूता पिफरे पाँव जिजमान
ऐरे-गैरे लोग श्रा में ले आया पण्डित मक्कार, क्या समझे!! 48
+माँ तो मरे धीय को निश-दिन, मरती धीय धींगरा-शान
 और उदार बाप के घर में लूट-निपुण है पुत्र अपार, क्या समझे!! 49
+साधु उसे परसाद थमाये जो थाली में डाले दान
अंधा बाँट रहा रेवडि़याँ अपनों को दे बारम्बार, क्या समझे!! 50
+पागल होकर मति का अंधा आँख सहारे ढूंढे़ कान
 नगर ढिंढोरा कंधे छोरा सूझे नहीं सही उपचार, क्या समझे!! 51
+समझदार उसको ही मानो करता युक्ति राह आसान
पल-पल हुक्का पीने वाला गाड़े भूभर में अंगार, क्या समझे!! 52
+कर अपमान खिलाये खाना रख आगे पूड़ी पकवान
गूलर के फल भीतर भुनगा इसका मीठापन बेकार, क्या समझे!! 53
+मूरख करता रोज कमायी खाते जिसको चतुर सुजान
संग चूतिया यूँ ही डोलें, चंट शिकारी करे शिकार, क्या समझे!! 54
+साधु चलायें चकलाघर अब, योगी को है भोग महान
 जेठ संग भागे द्वौरानी आज हुआ ऐसा संसार, क्या समझे!! 55
+मन पर दुःख का यदि साया हो तो मुख से गायब मुस्कान
सर के ऊपर बोझ रखो तो पहुँचे तुरत पाँव तक भार, क्या समझे!! 56
+बढ़े हुए नाखून, बाल दाढ़ी के होते बोझ समान
इन्हें काटना ही चतुराई, बढ़ी मूँछ का कर सत्कार, क्या समझे!! 57
+बूट पहनकर राह चलो तो काँटे करें राह आसान
 केवल भगतसिंह की भाषा सुनती है बहरी सरकार, क्या समझे!! 58
+क्रान्तिकारियों की तलवारें फिर से करें रक्त-स्नान
तिलक’ 'सुभाष' सरीखे नेता फिर भारत में हों तैयार, क्या समझे!! 59
+बेटी माँगे महल-दुमहले, कूटे बाप गैर के धान
माँ तो पीसत-पीसत हारी, पूत बने है साहूकार, क्या समझे!! 60
+उल्टी दिशा पालकी जानी, गलत नहीं यारो अनुमान
छिनरे नेताओं के कंधे जनता की डोली का भार, क्या समझे!! 61
+मन-मन भाये मूड़ हिलाये देख समोसा या मिष्ठान
बिन चुपड़ी रोटी रखवाये, खा रसगुल्ला दिल-बीमार, क्या समझे!! 62
+नेता रोये बिन कुर्सी के, वैश्या रोइ बुढ़ापा जान
रोइ सियासत बिन शकुनी के, खेती रोये बिन जलधार, क्या समझे!! 63
+टंगी मार बढ़े आगे जो उसको भी न राह आसान
खाई खोदे जो औरों को उसको कूप मिले तैयार, क्या समझे!! 64
+ढोंगी के भाड़े के टट्टू घोषित करते फिरें महान
बिन परमारथ बिना ज्ञान के नकली संत आज तैयार, क्या समझे!! 65
+गद्दी उतरे नेताजी का काग-कूकरे जैसा मान
चार दिनों की रहे चाँदनी फिर छाये जीवन अँधियार, क्या समझे!! 66
+हों बलहीन नियति के आगे अच्छे से अच्छे बलवान
शेर, भेडि़या, हाथी, मानुष सब झेंलें मच्छर की मार, क्या समझे!! 67
+नेता सत्ता रहते फूफा चमचों के सँग चढ़े विमान
सत्ता के जाते ही उससे आँख चुरायें तावेदार, क्या समझे!! 68
+तब तक ही कुहराम नहीं है छुपी हुई है जब तक म्यान
अगर खोल से बाहर निकली चमक उठेगी झट तलवार, क्या समझे!! 69
+पढ़कर अमरीका आये हो भेद-भाव पर अब भी ध्यान!
पानी पीकर जाति पूछना अब तो छोड़ो मेरे यार, क्या समझे!! 70
+क्षत्री वो जो करे निछावर निर्बल के हित अपने प्रान
जो क्षत्री हो रण से भागे उसके जीवन को धिक्कार, क्या समझे!! 71
+जिस घर बाप शराबी होगा सुत भी करे सुरा का पान
 चूहे जाए मिट्टी खोदें मान लीजिए आखिरकार, क्या समझे!! 72
+थोथे वर्ण-जाति पर करता मूरख तू किसलिए गुमान
सब ही बने चाम के इस जग, सबकी भइया जाति चमार, क्या समझे!! 73
+अपनी-अपनी जड़ें त्यागना कभी नहीं होगा आसान
रोटी-बेटी जाति बीच ही सब देते हैं विविध प्रकार, क्या समझे!! 74
+युद्ध और व्यवसाय रहे हैं किस युग यारो एक विधान?
वणिक-पुत्र के हाथ न शोभित होते तीर और तलवार, क्या समझे!! 75
+केवल काँव-काँव ही बोलें, काँव-काँव जिनको आसान
 काग पींजरे पढ़ वेदों को कैसे लेंगे बुद्धि सुधार, क्या समझे!! 76
+दूध मलाई चट कर जाये चढि़ कुर्सी सत्ता का श्वान
नोच रही बिल्ली-सी जनता खम्बे को होकर लाचार, क्या समझे!! 77
+समझदार घर रार न पाले लखि तिय को लाये मुस्कान
घर की खाँड़ किरकिरी लागे गुड़ पड़ोस में चखें गँवार, क्या समझे!! 78
+एक अपाहिज लोकपाल को लाने पर इन सबका ध्यान
गूगों के मुखिया बहरे हैं, अंधों के काने सरदार, क्या समझे!! 79
+अपने हाथ खुरपिया भारी राह चलत में देति थकान
पर-कंधे पै रखा फावड़ा लगे बीजना के सम भार, क्या समझे!! 80
+पीये छाछ मारकर फूकें दूधजले की यह पहचान
रस्सी देखि सांप का काटा करता भारी चीख-पुकार, क्या समझे!! 81
+जने-जने का मनुआ राखत वैश्या है अब बाँझ समान
हास-दान देने वाले के नैनों मिले अश्रु की धार, क्या समझे!! 82
+लोकतंत्र में बने हुए हैं अंधे सब कानून महान
चित भी इसकी पट भी इसकी, सब कहते इसको सरकार, क्या समझे!! 83
+जितकी ब्यार उतई बरसाऔ गेंहू ज्वार बाजरा धान
पत्थर में कूआ के खोदे कब मिलती पानी की धार, क्या समझे!! 84
+कालेधन का करे आकलन अफसर बैठि बीच दालान
मंत्री के सुत बता रहे हैं सोलह चौके होते चार, क्या समझे!! 85
+सज्जन पास बैठकर आता मन उदारता-भरा विधान
पानी पीजे छनि-छानि के, गुरु बनाइये सोच-विचार, क्या समझे!! 86
+लोग देखते खड़े तमाशा, बढ़े न कोई मुट्ठी तान
निबलहिं अगर धींगरा मारै रोबन देई नहीं मक्कार, क्या समझे!! 87
+गूँगे-बहरे करें सभाएँ अहंकार जिनमें अभिमान
 नकटे-बूचे सबसे ऊँचे दें सज्जन की लाज उतार, क्या समझे!! 88
+नाम वसंत किन्तु है पतझर, जल के भीतर रेगिस्तान
बस बाहर की चमक-दमक है, बेर रखे गुठली का भार, क्या समझे!! 89
+बाप बिना क्या बेटी शादी, माँ बिन पले नहीं सन्तान
भइया बिना सनूना सूना, बिना धार चाकू बेकार, क्या समझे!! 90
+तीन लोक से लीला न्यारी रोम जले नीरोअन्जान
मस्तराम मस्ती में बस्ती फुँकी देख खुश होत अपार, क्या समझे!! 91
+भूल टैंट अपने नैनों के काने के अधरों मुस्कान
आसमान पर थूक रहे हैं सब के सब बौने किरदार, क्या समझे!! 92
+खुद को कहे सती-सावित्री  नगर-वधू-सा जिसका मान
उछल रही है चलनी जिसके भीतर देखे छेद हजार, क्या समझे!! 93
+आगे कूबर पीछे कूबर पर बाजे सुन्दर धनवान
मैराथन दौड़ों में देखा लूले-लँगड़ों का सत्कार, क्या समझे!! 94
+तीन बुलाये तेरह आये सब का रसगुल्लों पर ध्यान
टेड़ा बहुत निभाना दावत घड़ा चीकने रिश्तेदार, क्या समझे!! 95
+उनका करे क्रोध भी मंगल जो होते हैं साधु-समान
बादल गरजे, दामिनि दमके, किन्तु करे जल की बौछार, क्या समझे!! 96
+बनता सिलकर तन की शोभा, कैंची से कुछ कटकर थान
सन सड़कर रस्सी बन जाता, बाती जल करती उजियार, क्या समझे!! 97
+पानी लाओ चाय पिलाओ और रखो आगे मिष्ठान
कौन नहीं अफसर खुश होता इस युग लखि नोटों में भार, क्या समझे !! ९८
+बूँद-बूँद से घड़ा भरे है, पल-पल बढ़ते हो उत्थान
रत्ती-रत्ती के जोड़े से इक दिन बँधता हाथी द्वार, क्या समझे!! 99
+मजबूरी का नाम शुक्रिया अच्छी लगे बेसुरी तान
पतरी-मोटी कौन देखता मक्का की रोटी को यार, क्या समझे!! 100
+कूआ से घर तक जाना भी भरि मटका अति कष्ट समान
गंजी पनिहारिन के सर पर रखी ईंडुरी काँटेदार, क्या समझे!! 101
+दाँत न देखो उस गइया के जिसको किया गया हो दान
झट सौ बार परखिए लेकिन आयीं तोपें शस्त्रागार, क्या समझे!! 102
+कपड़े की दूकान कोयला-राख बेचना कब आसान
साथ-साथ कब होता यारो इत्र-हींग का कारोबार, क्या समझे!! 103
+चोरों से घर की रखवाली करवाना मूरखपन मान
छोड़ा जाय चटोरी कुतिया बूते नहीं जलेबी-थार, क्या समझे!! 104
+एक पंथ दो काज बनावै होती वो हर चीज महान
रई न केवल छाछ निकारे घी को भी सँग देति निकार, क्या समझे!! 105
+फटे दूध के बीच जमामन डाल दही मिलता नहिं मान
तेल नहीं बालू से निकले मथो भले ही सौ-सौ बार, क्या समझे!! 106
+कंड़ा-पाथन भाग गयी झट घर में आये जब मेहमान
 चाय कराह-कराह बनाये घर में मीयाँ तावेदार, क्या समझे!! 107
+ककड़ी के चोरों को फाँसी, देशद्रोहियो का सम्मान
सत्यमेव जयतेके नारे लिख-लिख मगन होय सरकार, क्या समझे!! 108
+पेटू मरे पेट की खातिर, नामी देतु नाम पर जान
धरती ऊसर चाहे सूखा, संत चाहता सुख संसार, क्या समझे!! 109
+भूखे को रोटी की चाहत, नेता चाहे सत्ता-शान
धूप माँगता है खरबूजा, माँगे आम मेह की धार, क्या समझे!! 110
+बना दिया माहौल सभी ने नयी बहू को नर्क समान
 ननद-जिठानी चरें मखाने, जच्चारानी पतली दार, क्या समझे!! 111
+नंग किराये पर रहता है किन्तु महल का करे बखान
बिना चून के सौ-सौ रोटी ऐसे होती हैं तैयार, क्या समझे!! 112
+एक-एक मिल होते ग्यारह, सभी काम होते आसान
एक हाथ से बँधे न पगड़ी, एक हाथ ताली नहिं यार, क्या समझे!! 113
+सड़क नहीं कमरे आलिंगन होता नैतिक, पाता मान
नाक दिखे आंखों का काजल तो देता है मन को भार, क्या समझे!! 114
+घोड़े से गिर शान न जाती, नज़र गिरे से जाती शान
जो सर देता सच की खातिर, माना जाता वह सरदार, क्या समझे!! 115
+केवल कोरे समझोतों से क्या सुधरेगा पाकिस्तान
बिन आदेश मुल्क पै भारी सेना के अच्छे हथियार, क्या समझे!! 116
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+रमेशराज, 15\109, ईसानगर , अलीगढ-२०२००१

|| रमेशराज की लम्बी तेवरी [ तेवर-शतक ] से ||

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