‘धन का मद गदगद करे’ [ लम्बी तेवरी -तेवर-शतक ]
+रमेशराज
+कितने विश्वामित्र, माया के आगे टिकें
इत्र सरीखा दे महक धन -वैभव हर बार । 1
+अब मंत्री-पद पाय, मुनिवर नारद खुश बहुत
धन का मद गदगद करे सत्य हुआ निस्सार । 2
+बुरा-गँवार समाज, गोकुल का इसको लगे
राधा कान्हा से कहे ‘चल अमरीका यार’ । 3
+सुख की चादर तान, राम आज के सो रहे
सीता के दुःख जानने कौन धाय इस बार । 4
+अपनी नाक कटाय, सूपनखा जब आ गयी
नकटों ने पहना दिये झट नकटी को हार । 5
+लगे वोट का ढेर, राजनीति कर दलित की
बहुत राम के काम का शबरी का सत्कार । 6
+चंचल-शोख बनाय, अपने थिर अस्तित्व को
मिली अहल्या आज की लिये देह-व्यापार । 7
+कहलाते हैं चीफ, राजनीति में आजकल
राम आज शम्बूक-से तप के बन आधार । 8
+मातें दे अविराम, भाई को भाई विहँस
अब केशव-बलराम में नित्य नयी तकरार । 9
+आज तीर-संधान , केवल सत्ता-वरण को
अर्जुन बगुले की तरह करे मीन पर वार । 10
+छोड़ रही है तीर, सुरसा कामुक वृत्ति का
गश खाकर हनुमत गिरें अब के आखिरकार । 11
+अरे समय के चक्र, जन-जन के अब पीर मन
हर सीधी
रेखा करी तूने वक्राकार । 12
+रावण आज चलाय, रिश्वत का ब्रह्मास्त्र जब
अडिग पांव अंगद रखे क्यों कर आखिरकार । 13
+देख नया गठजोड़, हर कोई हैरान है
आज उजाले का बना सखा-मित्र अँधियार । 14
+रुचिर लगे विष-अर्क,
लोग नर्क में खुश बहुत
हर असत्य अब बन गया शुद्ध सत्य का सार । 15
+बन सत्ता का अंग, खुश है आज विपक्ष अति
ज्यों मिट्टी के तेल सँग गदगद हो अंगार ।
16
+शुरु हुआ व्यापार, राजनीति से प्रीति का
अति महान हमने लिखे सब बौने किरदार । 17
+कभी सत्य के साथ, रखती थी हर तथ्य को
आज हमारी लेखनी सिर्फ करे व्यापार । 18
+नेता-नौकरशाह, देते आह-कराह अति
दोनों के गठजोड़ से जन में हाहाकार । 19
+विद्रोहों के छन्द, कायर क्या रच पायँगे
बिल्ली लखि आँखें करे बन्द कबूतर यार । 20
+अजब विरोधाभास, दिखलायी देने लगा
चन्दन-से मन में मिले दुर्गंधों का ज्वार । 21
+तू जवाब अनुकूल, पहले से ही सोच ले
भेंटे करेगा फूल अब बधिक तुझे हर बार । 22
+लगें अहिंसा-मंत्र, हम सबको अति तुच्छ अब
अभिनंदित हो आजकल रक्त-सनी तलवार । 23
+हर आचार-विचार, देता छल पल में बदल
लालच सच को छीलता,
झूठ लीलता प्यार। 24
+आज गिद्ध-सी दृष्टि,
खेतों पर सरकार की
आत्मदाह को हैं विवश खेतों के हकदार । 25
+दफ्तर आज शुमार, पिकनिक-स्थल में हुआ
दम्भी नौकरशाह को हर दिन अब इतवार। 26
+आज बँटे माँ-बाप, खेत कटा-आँगन घटा
पूरा घर खण्डहर हुआ कैसी चली बयार। 27
+उन्मादी अखबार, हम भी बनकर रह गये
नूर उगलती थी कलम,
अब उगले अँधियार । 28
+हम इतने मजबूर, रोजी-रोटी ने किये
बना लिया साहित्य भी जैसे हो अखबार। 29
+पनपी हुई दरार, कल चौड़ी जायगी
पुल व्याकुल इस रोग पर होता आखिरकार। 30
+कहना पड़ता नूर, आज विवश हो तिमिर को
सभी भौंथरे पड़ गये अपने नव हथियार। 31
+मोह-रोग में आज, संत भोग के योग में
जनता इनको मानती ईश्वर का अवतार। 32
+अब ऐसा है दौर, कुछ जेहादी बन गये
साधुवृत्ति संयम-भरे अपने चलन उतार। 33
+कुछ खिसकाया माल, विक्रम ने जब जेब से
भूल गया वैताल झट प्रश्नों की बौछार। 34
+अब जन-जन की जेब, संत-मौलवी नापते
केवल सबको लूटना कथित धर्म का सार। 35
+हनुमान घी घास,
रामलला साबुन बने
तम्बाकू बन बिक रहे देवों के अवतार। 36
+ऐसा छाया शोर,
हरित विदेशी क्रान्ति का
खेत रेत के प्रेत ने निगल लिये इस बार। 37
+सोये कृपा-निधान पूरे भारतवर्ष के
सुख के ‘देव-उठान’ को तरस गये हम यार। 38
+और करें यम सिद्ध ,
मातम का मौसम यहाँ
चील गिद्ध वक काग अहि हमले को तैयार। 39
+तर जलधर से आज, नयन
वतन के हो गये
बने देश के वास्ते नेताजी तलवार। 40
+अब दुःख का पर्याय,
सुख का हर व्यवसाय है
हानि-ग्लानि में हम जियें पायें केवल हार।
41
+यूँ बदला माहौल,
हमने अपने देश का
आज बेचने मुल्क को हम सब हैं तैयार। 42
+फिर-फिर यही सुझाव, अमरीका
देता हमें
‘करो नाव में घाव तुम होना है यदि पार।’ 43
+हाथ-पाँव बेकार,
विश्व बैंक ने कर दिये
फिर भी देश खजूर पर चढ़ने को तैयार’। 44
+हुए फिदा हम आज,
हर अमरीकी नीति पर
क्षण-भर की सुविधा हमें दुविधा अमित अपार। 45
+दो बेटों का न्याय,
माँ भी कैसा कर रही
एक पुत्र को फूल-सी,
एक पुत्र को खार। 46
+देख अनोखी भोर,
ताकतवर सुत खुश हुआ
जो बेटा कमजोर था माँ ने लिया डकार। 47
+कौने करे विश्वास,
ऐसे माँ के रूप पर
जो कपूत उसकी नज़र नित माँ रही उतार। 48
+उसको सच्चा पूत,
आज कलियुगी माँ कहे
गिद्ध सरीखा-साँप-सा जिसका हर व्यवहार। 49
+सारे पुत्र समान,
माँ को होने चाहिए
पर इस युग करती है कहाँ माँ ऐसा उपचार। 50
+माँ है बेहद दक्ष,
कुटिल चाल के खेल में
दो बेटों में धींग का नित स्वागत-सत्कार। 51
+बहशी-आदमखोर,
पूरा घर माँ ने किया
भाई से भाई लड़ा बार-बार ललकार। 52
+‘दानवीर’ श्रमवीर’,
माँ बोली ‘तू तो बड़ा’
‘छोटे से हक माँगना बेटा है बेकार’। 53
+माँ के अद्भूत रूप,
इस युग में देखे कई
एक तरफ वह धूप-सी,
एक तरफ अंधियार । 54
+घनी मिठासें-प्रेम,
पिता गये थे छोड़कर
उसी ओर अब मोड़ दी माता ने विषधार। 55
+अलगावों की रेख,
सारे घर में खिंच गयी
भाई-भाई के हृदय अब है घृणा अपार। 56
+नये-नये अंदाज,
देख-देख माँ खुश हुई
अलग-अलग गोधन पुजे जब घर पहली बार। 57
+बढ़े बड़े अलगाव,
बहू लड़ी-बेटे लड़े
घावों पर माँ ने करी अम्लों की बौछार। 58
+सम्बन्धों के बीच, पिता
रहे पुल की तरह
माँ अब पैदा कर रही रिश्तों बीच दरार। 59
+मंत्री की सरकार, मंत्री
का अखबार है
छापे भूख अकाल को रोज वसंत-बहार। 60
+मधुकर मधु पी जाय, मधुमाखी
संचय करे
एक तपस्वनि एक खल के सम पाय प्रचार। 61
+खुद ही विश्वामित्र,
बिना डिगाये अब डिगे
कामवासना से भरे उस में आज विचार। 62
+सत्ता की विषबेल,
छायी पूरे देश पर
राजनीति के दीप में तेल नहीं इस बार। 63
+युद्ध
न प्रेम विरुद्ध, प्रेम न युद्ध विरुद्ध है
रति की रक्षा के लिये कर थामो हथियार। 64
+मति-गति छल के साथ,
कलि के संग उमंग अति
बल प्रयोग के बीच है नैतिक लोकाचार। 65
+तीर-तीर-दर-तीर,
आवृत्तियों में पीर दे
त्रिभुज बना अब का मनुज,
जाने केवल वार। 66
+गहरे संशय आज,
आदरेय देने लगे
विस्मय-भय की लय बना सद्परिचय का सार। 67
+दया कहाँ उर-बीच,
मद आदत-लत बन गया
अहंकार पैदा करे हर मन कलि की धार। 68
+अब केवल व्यापार,
रीति-प्रीति उद्गार सब
संस्कार सत्कार में यार न आज उदार। 69
+सबसे बोले प्याज-‘मैं सुगन्ध में सौंफ-सी’
अब बिन सूत-कपास के ताने-बाने यार। 70
+थोड़ा भी संवेद,
इनके बीच न खोज तू
सूजे, सुम्मी,
छैनियाँ छेद करें हर बार । 71
+हुआ टोल से दूर,
खग किलोल से बोल से
पिंजरे में सैयाद के अब पंछी लाचार। 72
+वहाँ न अच्छा प्यार,
जहाँ वार ही वार हों
एक टेक ही नेक है खल की खातिर ‘मार’। 73
+फिर बोलेगी काँव,
कोयल जैसी द्रौपदी
जल के भ्रम पर पाँव क्यों रखता है तू यार?
74
+सिर्फ हमारे पास,
शुतुर्मुग-सी गर्दनें
तूफाँ के आगे झुकें अब हम बारम्बार। 75
+लेकर जियो गुरूर,
भले अंगदी पाँव-सा
अंधड़ में जड़ की पकड़,
जकड़-अकड़ बेकार। 76
+करें न हम छल-पाप,
जाप न छूटे सत्य का
आप चाप पर वाण लो भले प्राण लो यार। 77
+वहाँ क्रान्ति का ख्वाब,
क्या पालेगा कवि जहाँ
चाबुक से चमड़ी कहे-‘तू ही मेरा यार’। 78
+किसका लेगा पक्ष,
रे मन भावुक अब बता
वृक्ष कुल्हाड़ी का करें जब स्वागत-सत्कार।
79
+कवि करुणा के छंद,
कलियुग में कैसे रचे
तरु को दे आनंद जब अब आरी का प्यार। 80
+हुए विरल सूर्यांश,
सर्प-स्वभावी अब घने
कागा हंसों पर करें व्यंग्यों की बौछार। 81
+नये-नये उत्पात,
बहुत कठिन दिन आ गये
दिखने लगा प्रभात अब अन्धकार का यार। 82
+कैसे जाएँ अश्रु,
सूख मोरनी के नयन
कत्थक करते मोर पर किया वधिक ने वार। 83
+लुटा नयन का हास,
सुख का हर आमुख कुटा
घात भरे अनुप्रास में अंधकार का वार। 84
+फीकी-सी मुस्कान,
अन्तर में डर की लहर
करें आज हम अतिथि का यूँ स्वागत-सत्कार। 85
+कलहप्रिया के बोल,
दाम देख जनते सुलह
कामा करे किलोल अति कर-कर नामा पार। 86
+वर मानुष का ध्यान,
सिर्फ शब्द-व्यापार पर
‘अगर-मगर’ सज्जित अधर ,
थोथा शिष्टाचार। 87
+रस-चूसे स्वच्छंद,
आज भ्रमर हर फूल से
मधु -चोरी मकरंद को मिलता कारागार। 88
+महँगाई की मार,
झेल रहा है आज मन
मुल्तानी मिट्टी लगें तेरे शिष्टाचार। 89
+बने न ये इन्सान,
अहंकार मद की सनद
मधु मुस्कान-जुबान का अब हो लोकाचार। 90
+भला वधिक को अंत,
जीवन से ज्यादा लगे
गिद्ध
कहे शव देखकर ‘आयी मधुर बहार’। 91
+कभी न बने कुरूप,
सुजन संत का क्रोध भी
भरे महँक वातास में जल चन्दन हर बार । 92
+खींचे सबका ध्यान,
अलग-थलग मग का विहग
करता कोई भीड़ का कब स्वागत-सत्कार। 93
+‘मुझसे जीवित खम्ब’ कहती है छत आजकल
खुद को समझे अप्सरा कुब्जा कर शृंगार। 94
+होने चले गुलाम हम फिर गोरी नस्ल के
आज न कोई शोर है और नहीं प्रतिकार। 95
+महँकें आज गुलाब,
अपने खेत विदेश के
आज गुलामी से हुआ हमें अनूठा प्यार। 96
+घर के कारोबार,
रँगे विदेशी रंग में
आज स्वदेशी नीति पर गिरने लगा तुषार। 97
+विश्व बैंक के शंख,
यदि यूँ ही फूँके गये
हम सबको डस कर रहे डंकल आखिरकार। 98
+बजें विदेशी साज,
भूले राग स्वदेश के
अपने ही घर हम दिखें आज अजनवी यार। 99
+भले लगें प्रस्ताव,
शान्ति-निरस्तीकरण के
युद्धभूमि में वार हम सहने को लाचार। 100
+कर्जा साहूकार,
बेमतलब देता नहीं
हम सबकी कल देखना लेगा मींग निकार। 101
+हरे-भरे जो खेत, आज विदेशी खाद से
इनमें कल को देखना पाये मरु विस्तार। 102
=
+सारे आदमखोर,
देशभक्त बनकर तनें
देशद्रोहियों का यहाँ हो स्वागत-सत्कार।
103
+हँस-हँस दूध् पिलाय,
विषधर को हम सब रहे
हमें सिर्फ भाते बुरे अमरीकी उद्गार। 104
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+रमेशराज
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