+ ' अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी -.
-----------------------------------1
घिनौनी इस व्यवस्था से
खलों की अन्ध पूजा से खुशी किसको मिली?
काम या भोग हो जिसमें
उसी बीमार कविता से खुशी किसको मिली?
लूटते घाट पर पण्डे
कथित उस पाक गंगा से खुशी किसको मिली?
लदे दायित्व बच्चों के
रूप की आज चर्चा से खुशी किसको मिली?
सुरक्षित भेडि़ये रहते
सियासत के हवाला से खुशी किसको मिली?
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
जिनमें चीखें विद्रोही की
वही जुबानें सिलीं, करें हम क्या बोलो!
खाद ध्रर्म का दिया गया था
विष-कलिकाएँ खिलीं,
करें हम क्या बोलो!
दुराचरण छल पाप झूठ की
कब बुनियादें हिलीं, करें हम क्या बोलो!
उग आये सँग-सँग बबूल
भी
मन की केली छिलीं, करें हम क्या बोलो!
+
रमेशराज
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
बदी में लिप्त किरदारो!
सत्यपूजक कलाकारो! बताओ क्या हुआ तुमको?
तुम्हें इन्सान बनना था
मानवता के हत्यारो! बताओ क्या हुआ तुमको?
तुम्हारे आचरण कैसे?
उकेरो तम को अखबारो, बताओ क्या हुआ तुमको?
किसी की जान ले लेना
ध्रर्म होता न बीमारो! बताओ क्या हुआ तुमको?
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
जो मुसकाते चहरे दीखें
घाव छुपाये गहरे हैं। आज न ख्वाब सुनहरे हैं।।
जनता का दुःख सुनने वाले
यारो गूँगे-बहरे हैं।
आज न ख्वाब सुनहरे हैं।।
आज़ादी में आज़ादी की
साँस-साँस पर पहरे हैं।
आज न ख्वाब सुनहरे हैं।।
गति की बातें करने वाले
दिखें आजकल ठहरे हैं। आज न ख्वाब सुनहरे हैं।।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
जिन्हें सच आज कहना था
न्याय के साथ रहना था, वही खामोश हैं यारो!
कहां हैं स्वर बगावत के ?
जिन्हें हर जुल्म सहना था, वही खामोश हैं यारो!
रेत ही रेत हैं नदियाँ
जिन्हें दरिया-सा बहना था, वही खामोश हैं यारो!
कबीरा की लुकाटी जो
जिन्हें हर पाप दहना था, वही खामोश हैं यारो!
नयन जो सूरदासों के
उन्हीं का हाथ गहना था, वही खामोश हैं यारो!
जिन्हें सच आज कहना था
न्याय के साथ रहना था, वही खामोश हैं यारो!
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
क़लमकार हत्यारे देखे
उन्मादों के मारे थे, धूप नहीं अँधियारे थे।
अब की बार कई क़लमों में
बस हिंसा के नारे थे, धूप नहीं अँधियारे थे।
चैन-अमन को डसने वाले
लब से शांति उचारे थे, धूप नहीं अँधियारे थे।
जिन शब्दों में मानवता थी
उनके अर्थ दुधारे थे, धूप नहीं अँधियारे थे।
देखी हमने अजब व्यंजना
सच के मान अँगारे थे, धूप नहीं अँधियारे थे।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
यहाँ संतो-इमामों को
बुरी बातें सदा सूझें
सियासी लोग हैं करते खुराफातें सदा। ये लायें
आपदा।।
सयाने हैं अघोरी हैं दिवाने हैं अघाने हैं
मिलें इनमें सियासत की घनी घातें सदा। ये लायें
आपदा।।
मंदिर के ये मस्जिद के बड़े गुस्सैल बादल हैं
इन्हें सूझें लहू की सिर्फ बरसातें सदा। ये लायें
आपदा।।
हमें मालूम है ये रोशनी के वहम हैं केवल
इन्हें भायें गुफाओं से मुलाकातें सदा। ये लायें
आपदा।।
महज रावण इन्हें मानो, इन्हीं से वंश उल्लू के
इन्हें दिन दे हमेशा घिन, रुचें रातें सदा। ये लायें आपदा।।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
जीवन से मृदुगान लुप्त हैं
खुशियों के उपमान गये, दीखे रहे विद्रूप नये।
चाहे जितनी चीखे जनता
इस निजाम के कान गये, दीखे रहे विद्रूप नये।
झूठे पुजते बस्ती-बस्ती
ध्रर्म-पुण्य के ज्ञान गये, दीख रहे विद्रूप नये।
सम्प्रदाय इतने दूषित हैं
गीता और कुरान गये, दीख रहे विद्रूप नये।
याद रहे मंदिर-मस्जिद बस
भक्तों से भगवान गये, दीखे रहे विद्रूप नये।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
ज़हर की सेब-से फल ने
चोर की आज साँकल ने नयी तहजीब सीखी है।
माइकल है गुरु इसका
स्वरों की आज कोयल ने नयी तहजीब सीखी है।
न देता बूँद पानी ये
आजकल खूब बादल ने नयी तहजीब सीखी है।
गलन से और भर देते
रजाई और कम्बल ने नयी तहजीब सीखी है।
कहे खुद को खरा सोना,
यही तो आज पीतल ने नयी तहजीब सीखी है।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
जनता राशन माँग रही है
सुविधा-साधन माँग रही,
सुखमय जीवन माँग रही।
जिसमें खुशियाँ प्रतिबिम्बित हों
पीड़ा दर्पन माँग रही, सुखमय जीवन माँग रही।
सूखी मुस्कानों की धरती
रिमझिम सावन माँग रही, सुखमय जीवन माँग रही।
सूनी-सूनी आज कलाई
अपने कंगन माँग रही, सुखमय जीवन माँग रही।
अब बदमैली नैतिकता की
काया कंचन माँग रही, सुखमय जीवन माँग रही।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
कहीं पर आँख में लालच कहीं दृग-बीच पानी है
कहीं पर आँख में लालच कहीं दृग-बीच पानी है
वही टीवी की चक्कर है, वही फ्रिज की कहानी है। खुशी आयी न आनी है।।
न लायी साथ जो भी धन, बहू कुलटा-कलंकिन है
न जीवन-भर बिना दौलत
पुकारी जाय रानी है। खुशी आयी न आनी है।।
कहाँ स्टोव ने इक दिन बहू से इस तरह हँस कर
‘खतम तेरी लपट के बीच ही होनी जवानी
है’। खुशी आयी न आनी है।।
दहेजी दानवों ने कब समय का सार समझा ये
कि उनकी लाडली भी तो कभी ससुराल जानी है। खुशी आयी
न आनी है।।
पिता को उलझनें भारी जहाँ बेटी सयानी है
जहाँ पर है जवां बेटा वहाँ पर बदगुमानी है। खुशी
आयी न आनी है।।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
जाल बिछायें नेताजी
जन को खायें आप सभी, दें मन को संताप सभी।
एक मर्सिया खुशियों का
हर दिन गायें आप सभी, दें मन को संताप सभी।
जनता तो भूखी-नंगी
माल उड़ायें आप सभी, दें मन को संताप सभी।
खुशहाली के दे नारे
गद्दी पायें आप सभी, दें मन को संताप सभी।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
फूल को खार लिखने में
हमें तलवार लिखने में शरम कुछ तो करो!
जहाँ जल की जरूरत है
वहाँ अंगार लिखने में शरम कुछ तो करो!
यहाँ बारूद मत बाँटो
घृणा को प्यार लिखने में शरम कुछ तो करो!
वधिक का जो विरोधी है
उसे बीमार लिखने में शरम कुछ तो करो!
कि जिसने जि़न्दगी छीनी
उसे अवतार लिखने में शरम कुछ तो करो!
कथा जो कर विषैला दे
उसे हर बार लिखने में शरम कुछ तो करो!
जहाँ पर चूडि़याँ टूटीं
वहाँ अभिसार लिखने में शरम कुछ तो करो!
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
सच की रीति निभाकर देख
क्या है ठोकर, खाकर देख,
जग में नूर बढ़ाकर देख।
अन्धकार से लड़ना सीख
दीपक एक जलाकर देख, जग में नूर बढ़ाकर देख।
अहंकार का सीना चीर
थोड़ा शीश नवा कर देख, जग में नूर बढ़ाकर देख।
देवदत्त मत बन सिद्धार्थ
घायल हंस बचाकर देख, जग में नूर बढ़ाकर देख।
आज भले हैं टूटे साज
तू सुर-ताल सजाकर देख,
जग में नूर बढ़ाकर देख।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
जीवन के स्तर पर बौने इस युग के कबिरा-रसखान [ 31
मात्राएँ , वीर छंद ]
हद से ज्यादा मिले घिनौने कविताएँ लिखने वाले। [ 30 मात्राएँ,
कुकुभ छंद ]
कोरे स्वाभिमान की यारो जिनकी चारित्रिक पहचान
चाट रहे है जूठे दौने कविताएँ लिखने वाले।
जितना भी ईमान बचा था, जिनता रहा मान-सम्मान
बेच रहे हैं औने-पौने कविताएँ लिखने वाले।
डाल दिये जिसने टुकड़े कुछ या करवाया मदिरापान
उसकी खातिर बने बिछौने कविताएँ लिखने वाले |
उतने ही भीतर से मैले-मकसैले ये नवविद्वान
जितने ऊपर लगें सलौने कविताएँ लिखने वाले।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
महँगाई ने हर सीने में घाव किया
पहले जैसा अब होली में कहाँ मजा है भाभीजी!
बाँच रही हैं अश्रु-कथाएँ अब आँखें
एक त्रासदी का चेहरों पर रंग पुता है भाभीजी!
मन से मन का मिलन कहीं भी रहा नहीं
बस लोगों का अहंकार ही गले मिला है भाभीजी!
गेंहू-जौ-सा प्यार न वितरित हो पाया
बस्ती-भर में बैर-भाव का अम्ल बँटा है भाभीजी!
सने हुए सब कूटनीति के कीचड़ में
इस होली पर अजब तमाशा यहाँ हुआ है भाभीजी!
और लिखूँ क्या मैं पाती में अब किस्से
कर्फ्यू-आगजनी-दंगे का अंदेशा है भाभीजी!
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
घर के ऊपर ऐसे दुर्दिन गहराये
खेत तुम्हारे भइया गिरवी रख आये हैं देवरजी!
आटे के दर्शन को आँखें तरस गयीं
घोल-घोल सतुआ पानी में
अब खाये हैं देवरजी!
बच्चे पकवानों की खातिर अड़े रहे
परीकथाओं से उनके मन बहलाये हैं देवरजी!
शादी हो जाए बिटिया की चैन मिले
इसी सोच ने भ्रात तुम्हारे सुलगाये हैं देवरजी!
जिन चहरों पर मुस्कानें थीं फूलों-सी
घर में अब वे सारे मुखड़े मुरझाये हैं देवरजी!
और लिखूँ क्या मैं पाती में, अश्रु बहें
मन पर दुःख के बादल गहरे अब छाये हैं देवरजी!
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
औरों में ये दोष निकालें बाल्मीकि की नव
सन्तान [ 31 मात्राएँ , वीर छंद ]
बस अपने ही दोष न देखें कविताएँ लिखने वाले। [ 30 मात्राएँ,
कुकुभ छंद ]
इनकी कविता में अंकित है बस्ती का किस्सा खामोश
पत्नी क्यों खामोश न देखें कविताएँ लिखने वाले।
जिनके अर्थ हमें जीने की सही दृष्टि का दें संदेश
उन शब्दों के कोश न देखें कविताएँ लिखने वाले।
जिसे कबीरा ने पाला था, सब कहते हैं जिसको सत्य
घायल वो खरगोश न देखें कविताएँ लिखने वाले।
कंचन-से कोमल कपोल के
करें कल्पना-कौतुक खूब
क्यों जन-जन में रोश
न देखें कविताएँ लिखने वाले।
+
रमेशराज +
+अन्धकार
से लड़ना सीख ' पुस्तक से रमेशराज की तेवरी
....................................................
कविताएँ लिखने से पहले ‘कबिरा’ जैसे बनो महान [ 31 मात्राएँ , वीर छंद ]
‘मीरा’ ने ज्यों
जहर पिया था, थोड़ा-सा पीकर देखो। [ 30 मात्राएँ, कुकुभ छंद ]
घावों पर यूँ नमक छिड़कना सबको होता है आसान
जैसे मैंने घाव सिये हैं, तुम थोड़े सीकर देखो।
कब कोई तब्दीली आयी थोथे बजा-बजाकर कर गाल
साथी इस समाज से पहले खुद को बागी कर देखो।
No comments:
Post a Comment