मेरी कृतियाँ

Friday, 19 February 2016

"कायर मरते पीठ दिखाकर" [लम्बी तेवरी-तेवर चालीसा ]

"कायर मरते पीठ दिखाकर" [लम्बी तेवरी-तेवर चालीसा ]
-रमेशराज
........................................................
+‘मीरा’ जैसा धर्म निभाकर
तीखे विष का प्याला पाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 1
+बन प्रहलाद देख ले प्यारे
अग्नि-कुण्ड के बीच नहाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 2
+अमृत रख औरों की खातिर
विष पी नीलकंठ कहलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 3
+इसकी एक मिसाल कबीरा
नयी रौशनी को फैलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 4
+भगत’, ‘राज’, ‘सुखदेव’ सरीखी
जल्लादों से फाँसी पाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 5
 +कायर मरते पीठ दिखाकर
वीर वक्ष पर गोली खाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 6
+जिसमें बैठे हों कुछ बच्चे
वही डूबती नाव बचाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 7
+भस्मासुर बनने से अच्छा
अपने को सुकरात बनाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 8
+कठिन कार्य था हमने माना
पर्वत से गंगाजी लाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 9
+पुत्र-वियोग भले झेला हो
दशरथ जैसा वचन निभाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 10
 +पाँच-पाँच पति, फिर भी अबला!
उस द्रौपदि का चीर बढ़ाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 11
+गुरु सम्मुख बन एकलव्य-सा
और अँगूठा विहँस कटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 12
+मरते काल बाँधने  वाले
राम-सरीखे तीर चलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 13 +‘अपने डर से बाहर निकलो’
कायर लोगों को समझाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 14
+जिन्हें गुलामी ही प्यारी है
उनके भीतर आग बसाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 15
 +तन की नहीं वतन की खातिर
अपने को ‘आजाद’ बनाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 16
+बनना सीख संत ‘फूले’ तू
जो कन्याएँ दलित, पढ़ाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 17
+लोग मरें कर अपनी चिन्ता
बस औरों के लिये दुआ कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 18
+खल की सत्ता से टकराकर
ऐसा कोई काम नया कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 19
+मोम सरीखा पिघल और जल
अंधकार  में उजियारा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 20
 +पत्रकार ‘विद्यार्थी’ जैसा
सम्प्रदाय की आग बुझाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 21
+हिम्मत हो अब्दुल हमीद-सी
पैटन टेंकों से टकराकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 22
+भले तीर-भाले झेले हों
पापी की लंका को ढाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 23
+इन्द्रदेव का कोप झेलते
अँगुली पर गिर्राज उठाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 24
+सूखे हुए खेत जो देखे
बादल ऐसे में वर्षा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 25
 +झट दे डालो अग्नि-परीक्षा
सोने-सा मन खूब तपाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 26
 +‘तिलक’ सरीखे भाषण देकर
शब्द-शब्द को अग्नि-कथा कर, मरा न कोई, अमर हुआ 27
+जैसे रानी लक्ष्मीबाई
अरि के सम्मुख खून बहाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 28
+जिससे डरे लोग सदियों से
ऐसे अंधकार  में जाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 29
+अबला-हित ज्यों भिड़ा जटायू
 खल से अपने पंख कटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 30
 +जीना सब कपीश-सा सीखो
सुरसा के जबड़ों में जाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 31
+मन यदि ही जैसे ‘सम्पाती’
सूरज से तन को जलवा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 32
 +‘लिकंन-सा’ संकल्प अगर हो
जाति-भेद का रूप मिटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 33
+लड़ो लड़ाई तुम ‘लेनिन-सी’
मजदूरों का हक दिलवा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 34
+मिट जाओगे मीरजाफरो।
देश-प्रेम में प्राण लुटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 35
 +मिले चुनौती लंकेशों को
अंगद जैसा पाँव अड़ाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 36
+गुरु नानक-सा बनना अच्छा
धर्मों के पाखण्ड बताकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 37
+जिनमें धधक  रही हो ज्वाला
खल को वो तेवर दिखलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 38
+अहंकार में एैंठ रही जो
उस गर्दन तलवार चलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ।39
+कविता को तेवरी बनाकर ,
खल सम्मुख तेवर दिखलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ।40


No comments:

Post a Comment