“ और भरो हुंकार ” [ रमेशराज की लम्बी तेवरी/तेवर चालीसा ]
+रमेशराज
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जनता लायी है अंगार
आज यही चर्चा है प्यारे अधराधर । 1
मिलकर मेटें भ्रष्टाचार
नयी क्रान्ति के जागेंगे अब फिर से स्वर।
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भीषण करके धनु-टंकार
एक महाभारत मानेंगे हम रचकर। 3
हम तो माँगें जन-अध्किार
अब करनी है चोट सिरफिरे सिस्टम पर। 4
हम ही जीतें आखिरकार
आजादी की जंग दूसरी अब लड़कर। 5
केवल माँगे विधि अनुसार
लोकपाल जनता का संसद के भीतर। 6
हम हैं कान्हा के अवतार
कौरव वंश-कंस को मेटेंगे हँस कर। 7
अपने तेवर बने कटार
जिनके आगे सारे खल काँपें थर-थर। 8
इसीलिए छल रहे उघार
राजा दीखे कल पूरा नंगा होकर। 9
हम हैं सच के पहरेदार
हमें देख सब चोर जियेंगे अब डर-डर। 10
जग से दूर करें अँधियार
कर में लिए मशाल चले हम मिलजुल कर। 11
खल का करें यही उपचार
इस निजाम की देह पड़ेंगे अब हंटर। 12
भरते इसीलिए हुंकार
और न लूटें देश धनिक सांसद अफसर। 13
कवि हैं करें व्यंग्य-बौछार
आज डटे हम खल-सम्मुख बन कद्दावर। 14
सब के हों समान अधिकार
कब्जा रहे न कुछ लोगों का ही धन पर। 15
यारो उनको हैं हम क्षार
जो सोचों में जियें अम्ल जैसा भरकर। 16
वार करे उन पर तलवार
जो बन बैठे आज व्यवस्था-परमेश्वर। 17
हम भी जनता सँग तैयार
आज जरुरी गाज गिरे सब चोरों पर। 18
खोलो-खोलो सुख के द्वार
यारो केवल दिखे क्रान्ति के ही मंजर। 19
यूँ ही और भरो हुंकार
गीदड़पन को छोड़ बनो यारो नाहर। 20
होगा उस पर नित्य प्रहार
लूटे भारत देश कहीं पर नेता गर। 21
अब सब ऐसे हों तैयार
जैसे अर्जुन लिये धनुष हो अपने कर। 22
कहीं बैठ जाना मत हार
माना नंगे पाँव सफर है काँटों पर। 23
या तो झेलें जन के वार
या फिर आदमखोर-चोर अब जायँ सुधर । 24
पेड़ भले हैं हम फलदार
किन्तु न झेलें और तुम्हारे हम पत्थर। 25
बनते शब्द यहाँ तलवार
ग़ज़ल बैठती होगी बेशक कोठे पर। 26
स्वर में भरे हुए अंगार
आज हमारी वाणी खल के लिये मुखर। 27
हम तो जीतें सभी प्रकार
क्या कर लोगे चक्रब्यूह छल के रचकर? 28
मानो! इसके रूप हजार
जो जनता अब भड़क रही है सड़कों पर। 29
हम हैं खल को बज्र-कुठार
विष में बुझे हुए अब शब्दों के खंजर। 30
केवल उन्हें रहे ललकार
दिखें लुटेरे चोर संत-से जो रहबर। 31
अब हम करें दुष्ट-संहार
संग डटे विश्वास तेवरी गंगाधर । 32
सारा छाँटेगा अँधियार
अब विरोध का देख निकलना है दिनकर। 33
सबसे चाहें यही करार
क़लम करें हम लोग व्यवस्था का ये सर। 34
आज कान्ति का बजे सितार
पूरे भारत-बीच गूँजते अपने स्वर। 35
हम हैं उसी रक्त की धार
खौल रहा जो सड़ी व्यवस्था को लेकर। 36
अब हम जिसको रहे उभार
अब नभ में सूराख करेगा हर पत्थर। 37
उभरे रूप शिवा का धार
करते तांडव नृत्य आज अक्षर-अक्षर। 38
निश्चित रघुनंदन अवतार
रावण-की खातिर होना अब धरती पर। 39
देखो दो छंदों में सार
हर तेवर के बीच, तेवरी के भीतर। 40
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+रमेशराज , 15/109, ईसानगर , अलीगढ -202001
मो. 9634551630
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