“ बाजों के पंख कतर रसिया “ [ रमेशराज की तेवरियाँ ]
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रमेशराज की
तेवरी ---1
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नित लूट डकैती राहजनी
पर चोर न पकड़ा जाय। रे हाय।।
जिनके पीछे सीबीआई
उनको ही रही बचाय। रे हाय।।
अब संविधान के रखवाले
काला धन रहे कमाय। रे हाय।।
संसद में गरजे हर नेता
बस झूठ-मूठ टकराय। रे हाय।।
कैसे सिस्टम बदले बहिना
अब खोजो नया उपाय। रे हाय।।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---2
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रति-लेखन हैं टुकड़े-टुकड़े
सबके मन हैं टुकड़े-टुकड़े, चहके जन हैं टुकड़े-टुकड़े।
अब लोग यहाँ मिल के न मिलें
मधु-से मन हैं टुकड़े-टुकड़े, घर-आँगन हैं टुकड़े-टुकड़े।
वह ओज दिखे न सरोज दिखे
अवलोकन हैं टुकड़े-टुकड़े, अब लोचन हैं टुकड़े-टुकड़े।
उद्बोधन हैं टुकड़े-टुकड़े
इत आफत में वृषभान लली, उत मोहन हैं टुकड़े-टुकड़े।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---3.
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नेता के संग पुलिस भारी
नेता को देख डरे जनता, अब गुण्डा ही नेता बनता।
नेता के इर्द-गिर्द चमचे
कुछ मूँछदार-कुछ मुँछमुण्डे,
नेता जनसेवक बन तनता।
नेता बापू का रूप धरे
काले-काले नित काम करे,
नेता आतंक नया जनता।
नेता के भारी घोटाले
उतना ही दिखे
साफ दामन, जितना घोटालों में सनता।
नेता के कई कारखाने
नेता के कई एनजीओ, नेता जनता को नित हनता।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---4.
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ये सिस्टम चैन लील जाता
अपने चिन्तन में आग भरो, तोड़ो विषदंत व्यवस्था के।
हैं सद्विचार के हत्यारे
हममें कायरता बाँट रहे जो मौन महंत व्यवस्था के।
हवनों में जन की आहुतियाँ
मत इनको सच्चा गुरु मानो, पोषक हैं संत व्यवस्था के।
ये रक्त बीज-सी विकसी है
अति सोच-समझकर करने हैं हम
सबको अंत व्यवस्था के।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---5.
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कागा मीठा-मीठा बोल
कोयल की मानिंद फिजा में थोड़ा-सा रस घोल।
घौंसले तक्षक नहीं टटोल
जहाँ चिरैया के बच्चे नित करते फिरें किलोल।
कबूतर तू पंखों को तोल
तेरा पीछा आज कर रहे बाजों के कुछ टोल।
बजे मत जैसे कोई ढोल
तेरे पास नहीं वह भाषा पोल रखे जो खोल।
भले ही कपड़ा है अनमोल
सधे हुए-हाथों बिन सींते आनी
निश्चित झोल।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---6.
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अति आह-भरा अब आलम है
बलवान बने अति असुर आज, छल-अपसंवेदन और बढ़ा।
हर ओर चोर अति अधमराज
आघातों-विषमय बातों का आकंठ
आयतन और बढ़ा।
जो दें नैनों को अश्रुधार
अब तो ऐसे आचरणों का आदर-अभिवादन और बढ़ा।
आशय अब रहे न अपराजित
अति आब-भरे अन्तर्मन से मधु
का आलोपन और बढ़ा।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---7.
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[जनक छंद में तेवरी ]
लोकतंत्र के नाम पर
गुण्डे संसद को दिये, भारत देश महान है।
पेड़ उजाड़े रात-दिन
वृक्षारोपण के लिये, भारत देश महान है।
चाहे जो दल देखिये
सबने घोटाले किये, भारत देश महान है।
हिंसा के माहौल में
गांधी को हैं हाशिये, भारत देश महान है।
पीने वाले छोड़ तू
बहक रहे कुछ बिन पिये, भारत देश महान है।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---8.
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सद् सम्मति का संचालन हो
सहमे-सहमे सब सु-मन यहाँ, सुख सुरभि सुहास संचयन हो।
सूखी-सूखी सुख की सलिला
सुषमा सुभाव हो सोत्प्रास, सर्वत्र सलिलमय सावन हो।
हर साधुवृत्ति पर सर्पदंश
सब के सब सारँग सिद्धकाम, यूँ अति संक्रामक स्वाँग न हो।
है आज सवेरा सन्ध्या-सम
अब सद्भावों की सुरसरि में स्पंदन हो-स्पंदन हो।
सौभाष बढ़े सौरभ सम्यक
यह सृष्टि समूची सूक्ति-भरी सित सारवान संविद मन हो।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---9.
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कौन कहे अब किसकी बहिना
इस युग में हर राधा रोयी, मरियम-सीता सिसकी बहिना।
उसके सँग में रेप हुआ है
अभी उम्र थी खेलकूद की, पाँच बरस की जिसकी बहिना।
आज उसी का सब कुछ काला
जन सेवक-मिस्टर क्लीन की कल
इमेज थी जिसकी बहिना।
ये कैसा उत्कर्ष देश का !
जो नैतिक-आदर्शवान थे,
बुद्धि उन्हीं की खिसकी बहिना।
जो दे छल, झूठे आश्वासन
उस नेता को हम दुत्कारें, आज जरूरत इसकी बहिना।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---10.
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उत्साह न उत्सव अब मन में
मधुहास बना अब उच्छ्वास, सुखप्रास कहाँ मधु बातों में।
उर में उलझन अपसंवेदन
उद्वेग वेग में हर उमगन, चन्दन-सा मन नित मातों में।
हर एक हृदय है टूक-टूक
उपमेय सुमन उपवन-उपवन घनघोर सहें दुःख रातों में।
अनुमान-ज्ञान में उत्कंपन
जन-जन का विहँसन हआ हवन,
अति चुभन आज सब नातों में।
उद्गार हार में उद्बोधित
अब उपादेय उपमेय रंग हैं अंग-अंग उत्पातों में।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---11.
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भइया मेरे मैं न करे घोटाले
मोकूँ झूठे दोष लगायें ये बीजेपी वाले।
भइया मेरी पल-पल काया काँपे
खोदीं कैसे ‘कोल’-खदानें, मेरी गर्दन हाले।
भइया मैं तो मौन-अहिंसावादी
मेरे पीछे पड़े हुए हैं क्यों संसद में भाले।
भइया मैंने ‘बंसल-अश्व’ न छोड़े
छीछालेदर बाद सही पर दागी सभी निकाले।
भइया मोकूँ सिर्फ ‘सोनिया’ भाये
मैंने ‘राहुल-बाबा’ के आदेश न कब हू टाले।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---12.
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देखे मत इधर-उधर रसिया
अब काम यही तू कर रसिया, बाजों के पंख कतर रसिया।
सच शूली पै चढ़ जायेगा
औरों की तरह गवाही में जो तू भी गया मुकर रसिया।
सस्ता बस यही खिलौना है
मुन्ना खेले गुब्बारे से, तू हवा न इतनी भर रसिया।
खल दल-बल का उत्पात यहाँ
ऐसे में अगर मौन साधा, सब बोलेंगे कायर रसिया।
अर्कान-रुक्न क्यों ढूँढ़
रहा
जन-पीड़ा-भरी तेवरी ये, इसमें मत खोज बहर रसिया।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---13.
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पेड़ हैं हम मान लीजे इसलिए
फूल की जल्वागरी को कल जुबां देकर रहें।
मेघ-से हम मरुथलों में
आ गये
रेत में डूबी नदी को कल जुबां देकर रहें।
हम सुबह के नूर हैं तम से कहो
अब नहीं तो रौशनी को कल जुबां देकर रहें।
यदि फना हो भी गये तो रंज क्या
हम डरी-गुमसुम सदी को कल जुबां
देकर रहें।
आज गूंगी है भले शब्दावली
अर्थ की भागीरथी को कल जुबां देकर रहें।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---14.
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हर तन अब तो जलता है
मोम सरीखा गलता है, भइया मेरे।
दिन अनुबंधित रातों से
सूरज कहाँ निकलता है, भइया मेरे।
इक गुलाब भी माटी में
कहाँ फूलता-फलता है,
भइया मेरे।
यह जमीन कैसी जिस पर
सबका पाँव फिसलता है, भइया मेरे।
देनी है तो रोटी दे
नारों से क्यों छलता है, भइया मेरे।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---15.
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प्यार की भरती न गागर लग रहा
जल नहीं अब एक छल में बोलता घर लग रहा।
कह रहा क्यूँ कर ‘लहर मुझसे बने’
वह समन्दर-सा न अन्दर
और बाहर लग रहा।
हम लचीले बाँस जैसे क्या बने
मिल गया मंतर हमें सुन आज मन तर लग रहा।
कुछ मुँडेरों को गिरा हम खुश हुए
बोझ हल्का क्या किया घर और दुल्लर लग रहा।
पाप को-संताप को जो है असह
आग उगलेगा, करेगा राख
शंकर लग रहा।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---16.
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चोर-लुटेरे बने राहबर
जल के थल-से अक्षर !
कैसे मंजर हैं !!
पराधीन भी नृत्य कर रहे !
शीशे के मछलीघर ! कैसे मंजर हैं !!
मेघों को जल ये क्या देंगे
रीते-रीते सागर !
कैसे मंजर हैं !!
पंखों में कैंची है इनके
फिर भी मस्त कबूतर ! कैसे मंजर हैं !!
हर जालिम ने अब पंछी के
नोच-नोच देखे पर !
कैसे मंजर हैं !!
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---17.
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वार तो हर बार सुन मन पर हुआ
बाद में उसका असर बन अश्रुसम तन पर हुआ।
तू न पिघलेगा वहम ये पाल मत
बर्फ-सा जमकर बता तर मोम
कब पत्थर हुआ।
यूँ न बह औकात में रह बात कह
भूल मत, पीकर नदी को आज तू
सागर हुआ।
तरु-लता पर बैठ देता घुड़कियाँ
वानरों से निकलकर फिर आदमी वानर हुआ।
गरल पीकर कंठ नीला क्यों नहीं ?
ज़हर देकर दूसरों को बन्धु तू शंकर हुआ।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---18.
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जिन्हें प्यार से तू टेरे
वे दुश्मन हैं तेरे, सुन भाई मेरे।
ये वंशज है साँपों के
अब जो दिखें सपेरे, सुन भाई मेरे।
धूप नहीं तम का जल्वा
सूरज रोज उकेरे, सुन भाई मेरे।
आये नदिया के तट पर
लेकर जाल मछेरे, सुन भाई मेरे।
कुछ तो हो अब रोटी-सा
लोग भूख ने घेरे, सुन भाई मेरे।
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---19.
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प्यार का गुन जन में गुंजन दे नहीं
आज सावन हरित-सा वन दे नहीं
तो क्या करें?
जिन्दगी शतरंज पर शत रंज भी
दिव्य साधन दिव्य-सा धन दे नहीं तो क्या करें?
सुखद सागर सुखद-सा गर अब नहीं
जो सु-मन, हमको सुमन घन दे नहीं तो क्या करें?
पीर का गज-भर लिखें,
कागज नहीं
आज कलम न, दर्द कल मन
दे नहीं तो क्या करें?
प्रेम-बंधन आज बन धन ही गया
भाव कुन्द न, किन्तु कुन्दन
दे नहीं तो क्या करें?
[ रमेशराज ]
रमेशराज की तेवरी ---20.
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दुःख दर्दों को अब पीते
लोग यहाँ पर जीते, बड़े फजीते हैं।
चिन्ताओं में रात कटी
रो-रोकर दिन बीते,
बड़े फजीते हैं।
सबको नोच-नोच खाते
अब संसद के चीते, बड़े फजीते हैं।
कंठ-कंठ में प्यास भरी
जल से सब घट रीते, बड़े फजीते हैं।
शब्दों की चोटें सहनीं
हम टाइप के फीते, बड़े फजीते हैं।
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+ रमेशराज , 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-२०२००१
मो.-9634551630
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