रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरियाँ
---------------------------------------------------
---------------------------------------------------
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....1.
-----------------------------------------------
कैसे भये डिजीटल ऊधौ
पहले
थे हम सोने जैसे , अब हैं पीतल ऊधौ |
‘
मन की बात ‘ तुम्हारी लगती
है
छल ही छल , है छल ही छल , है छल ही छल ऊधौ |
कहकर
अच्छे दिन आयेंगे
पाँव
पाँव में डाल रहे हो सबके साँकल ऊधौ |
पी
ली हमने कड़वी औषधि
रोग
हमें क्यों घेर रहे फिर बोलो पल पल ऊधौ |
+रमेशराज
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....2.
-----------------------------------------------
देखी
कवि तेरी कविताई
शब्दों
के भीतर ज़हरीली तूने फसल उगाई |
कवि
ये तूने क्या कर डाला
जहाँ
बनाना था पुल तुझको , वहाँ बनाई खाई |
बोलो
क्या कवि-कर्म यही है ?
जहाँ
प्यार के स्वर मीठे थे आग वहाँ धधकाई |
कवि
तू करने चला उजाला !
घुप्प
अँधेरे में फिर तूने क्यों कंदील बुझाई |
कवि
तू खुद को कहे कबीरा !
सम्प्रदाय
की रार तुझे फिर क्यूंकर पल-पल भायी ?
+रमेशराज
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....3.
-----------------------------------------------
नेता
डोलें फूले-फूले
जिस
जनता ने वोट दिया था , उस जनता को भूले |
अब
तक जितने गद्दी बैठे
कोरे
आश्वासन वाले सब लम्पट घाघ बतूले |
जनता
अपना हक़ जो माँगे
जनता
के प्रतिनिधि बनकर ये होते आग-बबूले |
अपने
जो पुरखों ने सींची
उन
डालों पर आज विदेशी डाल रहे हैं झूले |
अच्छे
दिन कैसे ये आये
सपने
अपने हुए अपाहिज अंधे लगड़े लूले |
+रमेशराज
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....4.
-----------------------------------------------
ऊधौ
दिन अच्छे ये कैसे !
डीज़ल
और खाद के हर दिन जब तुम दाम बढाऔ |
मत
तुम थोथे गाल बजाऔ
क्यों
न मिली इस महंगाई से हमको मुक्ति बताऔ ?
ऊधौ
नित इज्ज़त पर डाके
बहिन-बेटियाँ
रहें सुरक्षित वो क़ानून बनाऔ |
ऊधौ तुम तो रहे स्वदेशी
गीत
विदेशी फिर किस कारण भारत-बीच सुनाऔ ?
पहले
अंग्रेजों ने लूटे
पुनः
विदेशी हमको लूटें
, जाल न नये बिछाऔ |
+
रमेशराज
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....5.
-----------------------------------------------
ठगिनी
आज सियासत देखी
हर
नेता के भीतर हमने छल की आदत देखी |
इसका
गिरना तय है यारो
!
सरकारी
ठेके पर हमने खड़ी इमारत देखी |
पल-पल पापों का
अभिनन्दन
हिस्से
में अब सच्चाई के केवल जिल्लत देखी |
जो
नित माँ-बहिनों को लूटे
अबला
उन गुंडों के आगे करती मिन्नत देखी |
धर्म
का विकृत रूप कबीरा
वैरागी
की धन-नारी से विकट मुहब्बत देखी |
+रमेशराज
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....6.
-----------------------------------------------
ऊधौ
खल ही तुमने तारे
कुर्सी-कुर्सी पर बैठाए
चोर और हत्यारे |
ऊधौ
दीखें बिल्डिंग
- सड़कें
नये-नये कानून बनाकर
छीने खेत हमारे |
ऊधौ
जन को दाल न रोटी
मन
के भीतर अब भरती नित मंहगाई अंगारे |
ऊधौ
हमको तुम छल बैठे
लगा-लगाकर नव विकास
के मंच-मंच से नारे |
ऊधौ
आम आदमी सिसके
खास
जनों की सुविधा के हित सब कानून तुम्हारे |
+रमेशराज
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....7.
-----------------------------------------------
ऊधौ
जय-जयकार तुम्हारी
पाँच
साल के बाद तुम्हें फिर आयी याद हमारी |
ऊधौ
अब इज्ज़त पर डाके
बहिन-बेटियाँ लूट
रहे हैं अब जल्लाद हमारी |
ऊधौ
बिगड़े बजट घरों के
महंगाई
से आज तबीयत अति नाशाद हमारी |
ऊधौ
इसको धर्म कहो मत
आगजनी - पथराव करे
बस्ती बर्बाद हमारी |
ऊधौ
कैसे वोट तुम्हें दें
मत
आंको तुम जाति-धर्म से अब तादाद हमारी |
+ रमेशराज
रमेशराज
की पद जैसी शैली में तेवरी....8.
-----------------------------------------------
मैया
मेरी कैसी ये आज़ादी
?
खुलेआम
अब लूट रही है जनता को नित खादी |
मैया
मेरी कैसौ देश हमारौ
अब
बाबू चपरासी तक हैं सब रिश्वत के आदी |
मैया
मेरी सम्प्रदाय के झगड़े
हर
बस्ती को फूँक रहे हैं मज़हब के उन्मादी |
मैया
मेरी होय
'रेप ' थाने में
रपट
लिखने कित जाये अब हर अबला फरियादी |
मैया
मेरी पूँजीवाद निगोड़ा
मिल
नेता सँग शोषण करता बनकर अब जल्लादी |
+ रमेशराज
……………………………………………………………………………………….
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
Mo.-9634551630
No comments:
Post a Comment