कुबरों को नत नंग समाज
+रमेशराज
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रमेशराज की
तेवरी ....1
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उस क़ातिल ने केवल इतनी छोड़ी थी अपनी पहचान
मेरे मन का खून हुआ जब मुस्कानें थीं चोटों
पर।
जो भी लौटा उस मेले से, लौटा लेकर मन में टीस
सबने घायल सबको देखा, सब जानें थी चोटों पर।
जाने कितने घाव मिले पर सभी गये हँस-हँस कर झेल
बड़ी सुरीली और नशीली कुछ तानें थीं चोटों पर।
उसका नाम रमेशराज था कोई और नहीं था यार
जिसके घावों पर थी गीता, कुरआनें थीं चोटों पर।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....2
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अपनी चिन्ता छोड़ करें सरकारों की
तारीफों में जुटी हुई हैं गर्दन अब तलवारों की।
मरुथल में जो कोयल जैसे कूक रहे
आज मुल्क में लम्बी सूची है ऐसे बीमारों की।
कत्थक को तज कामकिलोलें करते हम
अपनाने हम लगे सभ्यता पश्चिम के बाजारों की।
‘शीतल जल के भण्डारे हम, महसूसो’
जिधर देखिए उधर घोषणाएँ जलते अंगारों की।
संत कहें जीवंत सभ्यता जो मुर्दा
जानेंगे हम कब सच्चाई इन बौने किरदारों की।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....3
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कभी सियासत, कभी
हुकूमत और कभी केवल व्यापार
तुमसे मिलकर प्रेम शब्द का अर्थ रोज तलवार हुआ।
जहाँ विशेषण सूरज के हैं वहाँ रौशनी जाती हार
यही हादिसा-यही हादिसा
जाने कितनी बार हुआ।
अब भी यह महसूस हो रहा मन पर रति के दंश हजार
नागिन जैसी संज्ञाओं से अनचाहा अभिसार हुआ।
जिनको समझे थे हम खुशियाँ, तल्खी-सा है
उनका सार
जीवन से हर सुख का परिचय दर्दों का आधार हुआ।
आँखों तक आयी नींदों पर उम्मीदों पर पड़ा तुषार
हर सपना ग़म के अजगर का पल-पल अब आहार हुआ।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....4
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देशद्रोहियों को गद्दी पर बिठा दिया
बड़े गर्व से इस कुकर्म को ‘आपदधर्म’ कहा उसने।
कहने को वह लोकतंत्र का है प्रहरी
करनी चाही किन्तु कैद कानूनन धूप-हवा उसने।
गीत स्वदेशी जिसके मुख पर रहते थे
जन-सम्मुख प्रस्ताव
विदेशी ख्वाबों-भरा रखा उसने।
‘विजय-पर्व’
वह मना रहा मातें खाकर
एक पराजय को भी कैसे-कैसे लिया भुना उसने।
मधुवन के फूलों का सौदा वो करता
कुछ लोगों के कमरे-बँगले गमले दिये सजा उसने।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....5
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जिनसे श्रद्धा और भक्ति-सँग जीवन अपना किया निहाल
उन्हीं गौतमी संज्ञाओं ने डाला घायल कर बाबा!
लिखती रहे हादिसे जिन पर बार-बार पत्थर की चोट
तुमने कभी टटोले होते ईमानों पर बाबा!
जीवन की सच्चाई को तुम समझोगे तब तक बेकार
जब तक नहीं निकलता कुंठित संस्कार का डर बाबा!
तुम भी उन अंधी गलियों में भटक रहे हो आखिरकार
जिन गलियों में सदियाँ हारीं खोज-खोज ईश्वर बाबा!
सिर्फ अहिंसा की जब मजहब देता मिला दुहाई रोज
फिर किसने इन्साँ के घौंपा ये चाकू-खंजर बाबा !
दुःखते मन की गाथा जब-जब जुबाँ न पायी अपनी बोल
ऐसे में सब कुछ कहने को आँखें हुई अधर बाबा!
जिन मंत्रों से तुम कहते हो-‘सबने पाया जीवन-दान’
यह भी जरा देखते उनसे उजड़े कितने घर बाबा!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....6
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समस्या से कतराते लोग
दिखे लोगों में बौना जोश कि कैसे आयेगा बदलाव?
प्रश्न को कब सुलझाते लोग
प्रेमिका का चाहें आगोश कि कैसे आयेगा बदलाव?
क्रान्ति का जिस मन भीतर ज्वार
देखा आज वही खामोश कि कैसे आयेगा बदलाव?
कुबेरों को नत नंग समाज
निर्बलों के प्रति खोया होश कि केसे आयेगा बदलाव?
जहाँ थे कभी अग्नि के गान
चुके अब सब विरोध के कोश कि कैसे आयेगा बदलाव?
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....7.
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अन्तर में डर रहे अनेक
पत्थर में सर रहे अनेक, सुख सारे दुःख के आलेख।
झेल रहे टुकड़ों के घाव
घर-घर में घर रहे
अनेक, सुख सारे दुःख के आलेख।
मतलब से स्वागत सत्कार
यूँ कर में कर रहे अनेक, सुख सारे दुःख के आलेख।
हास कभी तो झट उपहास
इक स्वर में स्वर रहे अनेक, सुख सारे दुःख के आलेख।
ताव भले लेकिन सद्भाव
अन्तर में
तर रहे अनेक, सुख सारे दुःख के आलेख।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....8
[ वर्णिक छंद]
बू उतारि पाक की
बाँह-टाँग धाड़-धाड़ लै उखारि पाक की।
मन में उबाल ला
पाप-बेल ताड़-ताड़ दै उजारि पाक की।
मेटि वंश शत्रु का
आज हाथ वाण ले, जाँ निकारि पाक की।
कण्डा फोडि़ पाक पै
माँगे कश्मीर, वीर
मुण्डिर झारि पाक की |
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....9.
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पोल खोल क्रम से
होता हर
टेड़ापन कन्टरोल क्रम से।
एक को बचा न यूँ
पक्ष या विपक्ष हेतु ले गिलोल क्रम से।
खड़े हैं असुर आज
वर्णमाला क्रोध की
यार बोल क्रम से।
यूँ न हार तम से
रात से प्रभात का मिलेगा मोल क्रम से।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....10.
[वर्णिक छंद]
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पूरे ढोर नंग चोर
सैंधबाज घूँसखोर बात करें धर्म की।
घर पै बने हैं बोझ
पूत ऐसे चारों ओर बात करें धर्म की।
जो कमीन छलदार
झूठ के
पकड़ छोर बात करें धर्म की।
गिद्ध-बाज देखो आज
बनते कपोत-मोर,
बात करें धर्म की।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....11
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सत्ता की कुचालन को राम-राम दूर से
मकड़ी के जालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
तोल-तोल तू बोल हमसे
रमेशराज
बड़बोले गालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
धनिये में लीद भरें कंकरीट दाल में
मोटे-मोटे लालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
सरकारी आँकड़ों के बादलों में जल है
सूखे-सूखे हालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
चीकने घड़ों की कौम, नेतन के वंश को
गैंड़े जैसी खालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
खोपड़ी को लाल-लाल हर हाल जो करें
ऐसी फुटबालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
नेताजी के बँगले में फसले-बहार है
फूली-फूली डालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
जाली नोट खींचे वोट, चोट दे वतन को
ऐसी टकसालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
छद्म-सी अदा के साथ
प्रश्न अब पूछिए
यक्ष के सवालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
आपके ये ढोल-बोल आपको
ही शुभ हों
तालहीन तालन को राम-राम दूर से, है प्रणाम दूर से।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....12
[वर्णिक
छंद]
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बहरों के तख्त-ताज
चारों और फैले उल्लू राज को नमस्कार।
बाबूओं को राम-राम
साँप वक गिद्ध चील बाज को नमस्कार।
जनता की लूटपाट
नेताजी के उल्टे कामकाज को नमस्कार।
अल्प वस्त्र तन पर
गोरी करे आज लोकलाज को नमस्कार।
तीर मन पीर मन
ऐसे सरताज पापी आज को नमस्कार।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....12.
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रात मौन प्रात मौन
सारे जज़्बात मौन, हिय की कहे क्या कौन?
दीन लोग गमगीन
हास उल्लास रास आस पै लगी है लौन।
छल बने पंच मंच
साँच पै आँच-टाँच,
साँच कहाँ तड़पौ न।
तम के बँधेगा ताज
यार आज देख नूर दूर-दूर दिखतौ न।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....13.
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आस्था जिन की रीढ़-विहीन
करें वे आदर्शों की बात, रहें वे घातों में तल्लीन।
दिखेगा वहाँ नपुंसक क्रोध
जहाँ पै चेहरे से सुकरात बने फिरते हों खल संगीन।
मैमने चले माँगने न्याय
चीर डालेंगे इनके गात, भेडि़ये कुर्सी पर आसीन।
दौलतों बीच सिसकता प्यार
समझ में आये अब ये हालात कि कैसे जल में प्यासी
मीन।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....14.
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बेहद भोला बनता है
छलिया भी अब ‘छल के
किस्से मैं क्या जानूँ’ कहता है।
मेहरबानियाँ भूल सभी
मीनों का
दल ‘जल के किस्से मैं क्या जानूँ’ कहता है।
खेत-खेत अब व्याकुल है
बादल भी ‘बादल के
किस्से मैं क्या जानूँ’ कहता है।
नयी सभ्यता भारत में !
यौवन अब ‘आँचल के
किस्से मैं क्या जानूँ’ कहता है।
गौतम बनते हत्यारे
खलनायक अब ‘खल के
किस्से मैं क्या जानूँ’ कहता है।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....15.
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नेता की जात निराली कुक्कू-कुक्कू
देता आश्वासन खाली, नेता के संग मवाली, कुक्कू-कुक्कू।
जनता तो भूखी-प्यासी दर-दर भटके
नेता के आगे थाली, नेता के संग मवाली, कुक्कू-कुक्कू।
बापू के सपनों को ये साकार कर रहा
नेता के साथ दुनाली, नेता के संग मवाली, कुक्कू-कुक्कू।
गाल पिचक कर हुए छुआरे अब जनता के
नेता पै छायी लाली, नेता के संग मवाली, कुक्कू-कुक्कू।
अमरीका के उल्लू बैठे डाल-डाल पर
नेता भारत का माली, नेता के संग मवाली, कुक्कू-कुक्कू।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....16.
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रोश न यदि मन होय, रोशन जीवन कब हुआ
बन्धु आज भी आ जभी, क्रान्ति कीर्तन होय।
गिरा सभी दीवार, आदम तू आ दम लगा
बैर-द्वेश के बीच में
होली-ईद न होय।
लालच का अब यार, नामन ना मन ला कभी
जग में सच-ईमान ही
बहुत बड़ा धन होय।
खरा बहै यदि प्रेम, फिर क्यों जगत खराब है
हर मन महँके फूल-सा, मिसरी-माखन होय।
एक नहीं सौ शर्त बद ले, बदले ये जहाँ
पाव न हो ये जि़न्दगी मन-भर पावन होय।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....17.
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जन सेवा का चढ़ा मुलम्मा
नेता करता धम्मक-धम्मा , जै नेता की।
जनता आज दूध को तरसे
नेताजी को दही कटम्मा, जै नेता की।
घोटालों से हालत पतली
नेताजी कौ खुलौ पजम्मा, जै नेता की।
जमे हुए हैं इस पर विषधर
अब कुर्सी कौ देख तितम्मा, जै नेता की।
नेता की जब कुर्सी खिसकी
नेता झट से गिरौ धड़म्मा , जै नेता की।
बूथ लूट संसद पहुँचाया
नेताजी ने पूत निकम्मा, जै नेता की।
नेता अजगर-सा मुँह फाड़े
पर जनता को कहे हरम्मा, जै नेता की।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी ....18.
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इन्सां जग में होय, सिर्फ विचारों से बड़ा
तन बौना आकार है, आका रहै न कोय।
रहें पालतू लोग, भरम न अब ये पाल तू
ला मन में मत क्रोध यूँ, आज न पूजें तोय।
जब गहराती रात, दिनकर दिन करता नहीं
घना अँधेरा छाँटती, तब दीपक की लोय।
अब को ना भयभीत, कोना-कोना देख ले
तुझसे डरने की प्रथा दी हमने अब खोय।
जन मत और प्रपंच, जनमत की तू ओट में
सुनले अब जनचेतना, जाग चुकी है सोय।
+रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109 , ईसानगर , निकट-थाना सासनी गेट , अलीगढ़-202001
मो. 9634551630
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