“ हम अंहिसा के पुजारी ” [ रमेशराज की तेवरियाँ ]
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रमेशराज की तेवरी .....1.
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फूल-सा मुख को बनाना
पड़ गया
जिस जगह पर चीखना था, मुस्कराना पड़ गया।
वो न कोई राम था, बदनाम था
पर हमें दिल चीरकर उसको दिखाना पड़ गया।
हम अहिंसा के पुजारी थे अतः
क़ातिलों के सामने सर को झुकाना पड़ गया।
हम गुलाबों के लिये तरसे बहुत
कैक्टस में किन्तु गन्धी मन रमाना पड़ गया।
रमेशराज की तेवरी .....2 .
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इस सिस्टम से लड़ना हमको
अब जुल्मी पर वार करें, चलो दुःखों के गाल छरें।
ढूँढ रहे हैं हम चिंगारी
इस सच का सत्कार करें, चलो दुःखों के गाल छरें।
जिनकी आँखें नम हैं गम से
उन लोगों से प्यार करें, चलो दुःखों के गाल छरें।
इस निजाम की आज पीठ पर
चाबुक जैसी मार करें, चलो दुःखों के गाल छरें।
तूफानों में जो घबरायी
उस कश्ती को पार करें, चलो दुःखों के गाल छरें।
रमेशराज की तेवरी .....3 .
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अहं का मीठा ज़हर पीते हुए
चुप्पियों के खण्डहर में आज हम जि़न्दा रहे।
प्यार का रिश्ता क़तल कर खुश हुए
सिर्फ एकाकी सफर में आज हम जि़न्दा रहे।
बस अँधेरों की कला को पूजते
रौशनी के एक डर में आज हम जि़न्दा रहे।
आग से नाते बनाते हम जिये
मोम जैसे एक घर में आज हम जि़न्दा रहे।
मेघ बनने का वहम नित पालते
छल-भरे जल के हुनर
में आज हम जि़न्दा रहे।
रमेशराज की तेवरी .....4 .
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एक जिबहखाना पक्षी का
आज बना हर गुम्बद, प्यारे सत्य यही।
बौने फिर भी बौने रहते
दर्प भले आदमकद, प्यारे सत्य यही।
मंत्रीजी के नकली आँसू
जिन पर जनता गदगद, प्यारे सत्य यही।
भाषण-नारों का हंगामा
आज हमारी संसद, प्यारे सत्य यही।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....5 .
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‘देखना कितना सहज अब हो गया’
बाँधकर आँखें हमारी पट्टियाँ कहने लगीं।
‘आप अब बेफिक्र होकर घूमिए’
पाँव-घुटनों को जकड़कर
बेडि़याँ कहने लगीं।
सीढि़याँ जब ले गयीं अंधी गुफा
‘तुम खुले आकाश में हो’ सीढि़याँ कहने लगीं।
‘तुम जहाँ हो रोशनी दो, साथ हैं’
दीप के नजदीक आकर आँधियाँ कहने लगीं।
आज सोचा था सुनें मधुवार्ता
पर विषैली बात हमसे बस्तियाँ कहने लगीं।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....6 .
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वे हम सबको लूट रहे हैं
बाज-गिद्ध् से टूट रहे,
अभी दिखेंगे रूप नये।।
ये कैसा कानून सखी री!
सब अपराधी छूट रहे, अभी दिखेंगे रूप नये।।
लोग आजकल बारूदों में
चिंगारी-से फूट रहे,
अभी दिखेंगे रूप नये।।
आज हमारी यही वीरता
हम निर्बल को कूट रहे, अभी दिखेंगे रूप नये।।
सच को आयीं चोटें गहरी
कूट आजकल बूट रहे, अभी दिखेंगे रूप नये।।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....7.
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इस तरह से हो रहा उपचार है
हर नदी को घाट पहले से अधिक बीमार है।
आज का स्पर्श फूलों-सा भले
छू रहा है तू जिसे, कल सोचना ‘अंगार’ है।
पीठ पर तेरी भले है थपथपी
किन्तु गर्दन पर कसाई रख रहा तलवार है।
आज कर में मल्टीनेशन फूल कुछ
यह विदेशी से स्वदेशी का अनूठा प्यार है।
ओढ़कर आदर्श चिथड़े अब खड़ा
झूठ के सर पर मुकुट, छलनन्दनों को हार है।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....8.
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सभी एक-से सत्ताधारी
तोड़ मोह के बन्धन यार, कर इस पर भी अब चिन्तन यार।
जिन से थी पहचान खुशी की
कहाँ गये वे सावन यार, कर इस पर भी अब चिन्तन यार।
सर ऊंचा कर जीना अच्छा
क्यों तुझ में बँधुआपन यार, कर इस पर भी अब चिन्तन यार।
तू भूखा पर नेता चरता
मिसरी मेवा माखन यार, कर इस पर भी अब चिन्तन यार।
ला थोड़ी-सी खुशहाली
तू
सामाजिक परिवर्तन यार, कर इस पर भी अब चिन्तन यार।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....9.
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भीख में कोई खुशी माँगी नहीं
जि़न्दगी से गिड़गिड़ाकर जि़न्दगी माँगी नहीं।
जी रहे बन कैक्टस-से हम सही
सिन्धु-लादे मेघ से हमने
नमी माँगी नहीं।
मल्टीननेशन खेल मत हमको दिखा
रोटियाँ माँगी वतन को, गुदगुदी माँगी नहीं।
है अँधेरा, जुगुनुओं
को खौफ क्या
सूर्य से कुछ रौशनी दिन-सी कभी माँगी नहीं।
सूख लेंगे हम मुँडेरों-तार पर
वस्त्र देशी हैं, विदेशी अलगनी माँगी नहीं।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....10.
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कुछ तो गीत आग के गा रे
लय न समय
से हारे, क्रान्ति जरूरी है।
आँत-आँत पर आज भूख के
चलें कटारें-आरे,
क्रान्ति जरूरी है।
नेता दें झूठे आश्वासन
उछलें कोरे नारे, क्रान्ति जरूरी है।
रोटी नहीं हाथ पर तेरे
वे रखते अंगारे, क्रान्ति जरूरी है।
ठगते रहते हरदम तुझको
वोटों के बंजारे, क्रान्ति जरूरी है।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....11 .
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मेघ हम, जल की कहानी और
दें
मृग को मृग मरीचिका के बीच पानी और दें।
आपने ग़म के अलावा क्या दिया
हम मगर वातावरण को रातरानी और दें।
आपको हमने निभाया प्रेम से
आप रिश्तों को भले ही बदगुमानी और दें।
आप तो बस बाँटते नफरत यहाँ
शहर को चाकू-तमंचों की
निशानी और दें।
आपकी मुस्कान भय की लय बनी
हम विनय की जय-भरे आशय मखानी और दें।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....12.
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अब तो यही टाट हैं सखि री
टूटी हुई खाट हैं री ।
यह तीरथ हो या वो तीरथ
रहजन घाट-घाट हैं री!
आज रोशनी रहे अनमनी
तम के रूप विराट हैं री!
यह सुख का कैसा किस्सा है
उर के सुर उचाट हैं री!
जिनको खुला-खुला रहना
था
बन्द वही कपाट हैं री!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....13.
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आप काँटा डाल पर, मैं फूल हूँ
मैं जहाँ हूँ जिस जगह हूँ हर तरह माकूल हूँ।
तू जफा मेरी बला से और कर
मैं वफा के रास्ते पर मस्त हूँ-मशगूल हूँ।
गन्दगी तुझ में बसी पक्की सड़क!
इसलिए मैं साफ हूँ, पगडंडियों की धूल हूँ।
बन्धु निकलेगी न तुझसे ब्याज भी
और क्या चुकता करेगा, सोच ले मैं ‘मूल’ हूँ।
ठेस पहुँचाना रही आदत नहीं
एक पश्चाताप-डूबी मैं
समय की भूल हूँ।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....14.
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साँसों बीच कटारी बहिना
चले दुःखों की आरी सुन, बुरा समय है प्यारी सुन।
आज वतन को बेच रहे हैं
वोटों के व्यापारी सुन, बुरा समय है प्यारी सुन।
दुःख-दुर्दों से अटी
हुई है
सुख की हर अलमारी सुन, बुरा समय है प्यारी सुन।
मिली न संग-संग मुद्दत
से
रोटी औ’ तरकारी सुन,
बुरा समय है प्यारी सुन।
खर्चे ही खर्चे हैं अब तो
मुआ पाँव
है भारी सुन, बुरा समय है प्यारी सुन।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....15.
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सभ्यता के ये असर घर में मिले
बाप से ज्यादा बडे़ कुछ पुत्रवर घर में मिले।
एक रिश्ता भी न मंजिल तक चले
मंजिलों के वास्ते लम्बे सफर घर में मिले।
वार कर दे कौन किसको मार दे
वो कहीं बाहर नहीं जो आज डर घर में मिले।
क्या गुणा इनसे करें क्या जोड़ दें
जब सिफर के आचरण वाले असर घर में मिले।
हर घड़ी ज्यादा बड़ी अब भूख है
कर रहे चट नेह को झट वो उदर घर में मिले।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....16.
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घर में माल न दाल सखी री!
हर सुख आज हलाल सखी! जीवन हुआ निढाल सखी!!
मीन-मीन को बीन रहे
हैं
मछुआरों के जाल सखी! जीवन हुआ निढाल सखी!!
सुख के दर्शन कहीं नहीं हैं
क्या पीहर-ससुराल सखी!
जीवन हुआ निढाल सखी!!
सब में बोले मरुथल का छल
क्या पोखर क्या ताल सखी! जीवन हुआ निढाल सखी!!
क्या नभ छूए मन की चिडि़या
पंख-पंख बेहाल सखी!
जीवन हुआ निढाल सखी!!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....17.
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एक बकरा मान चर्चों में रखा
उस वधिक ने आब-दाने के तमाशों में रखा।
वो रहा जि़न्दा अमीबा की तरह
काटकर उसको हजारों बार टुकड़ों में रखा।
बारहा एबोर्शन करवा दिया
बेटियों को औरतों ने अब न कोखों में रखा।
प्राण लेता, पर सजा
देता न ये
जि़न्दगी-भर तन
हमारा तीर-शूलों में रखा।
हम कमल-सा भास दें अब
क्यों नहीं
तन रहा जब दलदलों में, मन सुवासों में रखा।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....18.
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ये कैसा मधुमास सखी री!
हर मन बड़ा उदास सखी! मिटी खुशी की आस सखी!
सुख तो हैं परदेश आजकल
दर्दों का सहवास सखी! मिटी खुशी की आस सखी!
अब अधरों तक आते-आते
तोड़े दम परिहास सखी! मिटी खुशी की आस सखी!!
जल को मरुथल तरस रहे हैं
नदिया के मन प्यास सखी! मिटी खुशी की आस सखी!!
अब बन बैठे सपने अपने
टूटे हुए गिलास सखी! मिटी खुशी की आस सखी!!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....19.
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सोच मत ऐ मीत कटकर चल रहा
मैं विचारों की तरह तुझसे लिपट कर चल रहा।
धूप हूँ मैं, भोर का
आलेख हूँ
रात हूँ पर रात से हर रात घट कर चल रहा।
बर्फ-से माहौल में भी
आग तू
इसलिए मैं नाम तेरा आज रटकर चल रहा।
फैल जाऊँगा मैं खुशबू की तरह
फूल हूँ जितना बना, जितना सिमटकर चल रहा।
एक दिन लिखने लगेगा तेवरी
सोच अपना यदि ग़ज़ल से कट-उचल कर चल रहा।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी .....20.
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संसद-संसद गाऔ बहिना
ऐसौ गीत उठाऔ री! नयी क्रान्ति अब लाऔ री!
आज सुलगते-से मंजर
हैं
छप्पर-छान बचाऔ री! नयी क्रान्ति अब लाऔ री!
नेता आज नासपीटे हैं
इनको सबक सिखाऔ री! नयी क्रान्ति अब लाऔ री!
जिसमें हो इस तम का मातम
ऐसौ पाठ पढ़ाऔ री! नयी क्रान्ति अब लाऔ री!
दुःख से जो तुम लड़ना सीखो
तभी सुखों को पाऔ री! नयी क्रान्ति अब लाऔ री!
+रमेशराज
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