“ दूर प्रेम का नूर “ [ रमेशराज की तेवरियाँ ]
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रमेशराज की तेवरी......1.
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बनकर ‘मैमन सिंह’
आ गये घर जब भी वे यार
लोग डूबते गये यकायक ‘धूमिल’-से डर में।
घर में ‘औशीनरी’ सिसकती-करती रुदन अपार
मिला ‘पुरुरवा’ अब भी उर्वशियों के चक्कर में।
सीता का अपहरण जुबां पर, नैन नीर की धार
दिखे जटायु हमें आज भी कटे हुए ‘पर’ में।
चलो सुरक्षा करें-बचायें हुआ तीर से वार
आया होगा श्रवण पुनः जल भरने गागर में।
राम आज का मान लीजिए चाहेगा प्रति प्यार
फूँकेगा यदि प्राण अहल्या वाले पत्थर में।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......2.
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यही धरम का सार
लूटें आज महंत! दिखायी कहीं न देता अंत।।
फिरकों के जज्बात
बेहद हुए ज्वलंत! दिखायी कहीं न देता अंत।।
गीता और कुरान
इनमें रोज भिडंत! दिखायी कहीं न देता अंत।।
पतझर के मानिन्द
अब की बार वसंत! दिखायी कहीं न देता अंत।।
सुख तो भागा छोड़
पीड़ा बसी अनंत! दिखायी कहीं न देता अंत।।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......
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जंगल का कानून बदल दो हों सब ही खुशहाल
मानव को कुछ सुख के पल दो ओ माँ सरस्वती।
सूखे नहीं प्रेम की वसुधा इसका करो उपाय
जल दो-जल दो, जल दो-जल दो ओ माँ सरस्वती।
तान सके अपनी मुट्ठी को अत्याचारी देख
निर्बल को इतना अब बल दो ओ माँ सरस्वती।
शुष्क तने जैसे जीवन में खुशहाली मुस्काय
फूल पत्तियाँ टहनी फल दो ओ माँ सरस्वती।
काँटें और नुकीले पत्थर नियति न हों इस बार
घायल पावों को मखमल दो ओ माँ सरस्वती।
आज प्यार के दरिया झरने सूखे-सूखे ताल
इन्हें मेघ का नेह तरल दो ओ माँ सरस्वती।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......4.
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तम के मधु उद्गार
हँसकर करता
वार, नहीं उपचार।
वहशीनपन का एक
सबको चढ़ा बुखार, नहीं उपचार।
लोग कर रहे घात
भूले शिष्टाचार, नहीं उपचार।
हम क्या जानें प्रीति
हम खूनी किरदार, नहीं उपचार।
मिलें घृणा के बोल
छल का बढ़ा प्रसार, नहीं उपचार।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......5.
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पीर से चूर चिडि़याएँ बुरे हालात में अब भी
मरी हर बार इच्छाएँ बुरे हालात में।
हमारे अर्थ मीमांसक लगायें अर्थ चाहे जो
लहू-सी लाल कविताएँ
बुरे हालात में |
न बदले अर्थ जीवन के, न बदलीं घाव-गाथाएँ
घिरीं घनघोर शंकाएँ बुरे हालात में।
तनों की क्या तने तो रौशनी सँग रति मनाते हैं
जड़ें तम-बीच अबलाएँ बुरे
हालात में।
हमारी हर हसीं मुस्कान की पहचान है इतनी
वधिक के घर बँधी गायें बुरे हालात में।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......6.
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ये कैसे सद्भाव
मन को देते घाव, दुःखी हम बहुत दुःखी।
दूर प्रेम का नूर
दे मजहब अलगाव, दुःखी हम बहुत दुःखी।
भँवरों का जंजाल
फँसी समय की नाव, दुःखी हम बहुत दुःखी।
इन्सां आदमखोर
कैसे करें बचाव? दुःखी हम बहुत दुःखी।
रोके रुके न आज
रिश्तों में बिखराव, दुःखी हम बहुत दुःखी।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......7.
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गरल अमृत बनाने में शरम कुछ तो करो बाबा
हमारा मन दुःखाने में शरम कुछ तो करो!
गेरुआ वस्त्र-सा तुमने
किया हर झूठ को धारण
जटा छल की रखाने में शरम कुछ तो करो!
कदम दो-चार चलने दो हमारी
आस्थाओं को
इन्हें
औंधा गिराने में शरम कुछ तो करो!
कि जिससे फूल-से खिलते
शहर की हो हँसी गायब
पीर ऐसी बसाने में शरम कुछ तो करो!
भयावह इस अँधेरे में कहीं दो चार दीपक हैं
उन्हें पल-पल बुझाने
में शरम कुछ तो करो!
कि चावल पोटली में बाँधकर छल के-फरबों के
सुदामा जैसा जाने में शरम कुछ तो करो!
समय की तल्खियों के पास अब घुँघरू न गजरे हैं
ग़ज़ल इनको बताने में शरम कुछ तो करो!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......8.
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हम में अजब उबाल
साफ करें हम नाल, हमारा जीवन आज बवाल।
हम पूजें अँधियार
दीपों के ले थाल, हमारा जीवन आज बवाल।
छल के मुख मुस्कान
सच दीखे बेहाल, हमारा जीवन आज बवाल।
हर सच्चा इन्सान
खल ने किया हलाल, हमारा जीवन आज बवाल।
यहाँ न मत्स्य किलोल
सूख गये सब ताल, हमारा जीवन आज बवाल।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......9.
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सड़क की बात छोड़ो आज अपने घर न खुशियों में
रहें बंकर बनाकर भी अगर, बंकर में दुःख।
हमारे घाव पर नीबू निचोड़ा दर्द ने आकर
इसी से आज अक्सर है खुशी के स्वर में दुःख।
रहे सब जि़न्दगी के प्रश्न गूँगे या कि अनसुलझे
दिये भी तो दिये सुख ने हमें उत्तर में दुःख।
समय की पीठ पर चढ़कर अँधेरा मुस्कराता है
दिखायी दे किरन वाले हमें मंजर में दुःख।
कसैली हो गयी मैली मधुर सम्बन्ध की सरिता
दिखे है अब हमारे प्रेम के अक्षर में दुःख।
रमेशराज की तेवरी......10.
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लोग बड़े सिरफिरे आजकल
उन्मादों में घिरे हुए! क्या धर्म यही?
मंदिर-मस्जिद के आरों से
बुरी तरह हम चिरे हुए! क्या धर्म यही?
वे सब देव बने फिरते हैं
जो दानव हैं निरे हुए! क्या धर्म यही?
करते रोज धर्म की बातें
आचरणों से गिरे हुए! क्या धर्म यही?
सच की पाखंडी ज्वाला में
सुलगे-से सब सिरे हुए!
क्या धर्म यही?
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......11.
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अँधेरों से सुलह होगी, कभी सोचा न था हमने
रौशनी यूँ जिबह होगी, कभी सोचा न था। कभी होता न था।।
जहाँ पर धूप की गाथा किरन हर बार लिखती हों
वहाँ अंधी सुबह होगी, कभी सोचा न था। कभी होता न था।।
हमारे सामने जो सिर झुकाये मौन आया था
उसी से झट जिरह होगी, कभी सोचा न था। कभी होता न था।।
पीर को हम गला देते-घटा देते अँधेरों को
आग बेकार यह होगी, कभी सोचा न था। कभी होता न था।।
गले सबने लगाया आज पश्चिम की तिजारत को
सभी के साथ यह होगी, कभी सोचा न था। कभी होता न था।।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......12.
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अजब चली है हवा सखी री
इन्सां कातिल हुआ सखी! अब क्या होगा बता सखी!
सच के इजराइल पर महजब
स्कड जैसा गिरा सखी! अब क्या होगा बता सखी!
संतों से तो बच निकला सच
सद्दामों में फँसा सखी! अब क्या होगा बता सखी!
सुन-सुन आज धर्म की
बातें
मन भीतर तक छिला सखी! अब क्या होगा बता सखी!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......13.
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कहीं पै धड़-कहीं पै सर
अजब वातावरण यारो
लहू भी है लहू से तर, अजब वातावरण है!
समय के जिस कबूतर ने अभी उड़ना न सीखा था
उसी के नोच डाल पर, अजब वातावरण है!
जहाँ पर धर्म की बातें मिठासें घोल देती थीं
वहाँ अब घोलतीं हैं डर, अजब वातावरण है!
यहाँ इल्जाम साँकल पर लगें चोरी-डकैती के
घरों को लूटते लाॅकर, अजब वातावरण है!
यहाँ सूरज रहा है भज तिमिर की गीतमाला को
लुटेरे बन गये रहबर, अजब वातावरण है!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......14.
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सब में केवल अहम् आजकल
सब देते हैं जख़म प्रभू! सुनो आपकी कसम प्रभू!
नफरत की चैपायी रचती
अब तुलसी की क़लम प्रभू! सुनो आपकी कसम प्रभू!
करते मिले दया की बातें
अब तो अहले-सितम प्रभू!
सुनो आपकी कसम प्रभू!
मजहब के अंधे क्या जानें
मानवता का इलम प्रभू! सुनो आपकी कसम प्रभू!
करते नहीं व्यर्थ की हिंसा
खूँ हम में भी गरम प्रभू! सुनो आपकी कसम प्रभू!
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......15.
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झूठ को भोग सत्ता के
सत्य के घर रहें फाके, कभी सोचा न था।
जहाँ पर सच रहे हँसकर
पड़ेंगे उस जगह डाके, कभी सोचा न था।
वर्जना-झूठ की खातिर
सजेंगे थाल पूजा के, कभी सोचा न था।
हमारे कान फोड़ेगा
कहेगा बात चिल्ला के, कभी सोचा न था।
हृदय के बीच बेचैनी!
यही थे हल समस्या के? कभी सोचा न था।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......16.
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जिनके मीठे बोल सुधासम
वही रहे विष घोल, करें क्या अब बोलो।
धर्म शिकारी बना हुआ है
सच चिडि़यों का टोल, करें क्या अब बोलो।
नैतिकता के कर में घर में
छल की दिखे गिलोल, करें क्या अब बोलो।
आज धर्म का मर्म यही है
बजें सियासी ढोल, करें क्या अब बोलो।
प्रश्न अमन के क्या हम पूछें
उत्तर मिलते गोल, करें क्या अब बोलो।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......17.
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कपट-छल से भरी बातें
गरल-जल से भरी बातें
कभी सीखी नहीं।
हमारा मन मृदुल रहता,
महज बल से भरी बातें कभी सीखी नहीं।
हमारी आत्मा कुन्दन
कि पीतल से भरी बातें कभी सीखी नहीं।
महज भागीरथी विष की!
कमण्डल से भरी बातें कभी सीखी नहीं।
करें क्यों हम चरण-वन्दन
कि मखमल से भरी बातें कभी सीखी नहीं।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......18.
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आज धर्म की बात सभी के
दे मन को आघात, यही दुःख भारी।
हमें थमाकर विष के प्याले
वे बनते सुकरात, यही दुःख भारी।
आये अब्रे-दीनो-ईमां
ले खूनी बरसात, यही दुःख भारी।
अब की बार न प्यार न खुशबू
शूल-भरे हालात,
यही दुःख भारी।
माली को अब देख बाग में
काँपे थर-थर पात,
यही दुःख भारी।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......19.
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आप क्यूँ तपते तवे पर यूँ गिराते
ख्वाब तो बूँद हैं जल की निरंतर छटपटाते हैं।
भूल अपनी कब इन्हें मालूम होगी
विहँसकर पत्थरों में लोग पौधें रोप जाते हैं।
कौन जाने प्रीति के अनुबन्ध कैसे!
गड़ासे गर्दनों के बीच हँसकर गीत गाते हैं।
रेत तपता-सा नदी में
दे दिखायी
समय की आँख में आँसू वही पर छलछलाते हैं।
+रमेशराज
रमेशराज की तेवरी......20.
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जख्मीले जज्बात हमारे
त्रासद हैं हालात सखी, झेल रहे आघात सखी!
आँखों से है दूर रौशनी
सदा साथ है रात सखी, झेल रहे आघात सखी!
सम्पाती-से स्वप्न सँजोकर
जला गगन में गात सखी, झेल रहे आघात सखी!
रहनी मन की टहनी सूखी
टूटे सुख के पात सखी, झेल रहे आघात सखी!
दुःख-दर्दों में पले-बढ़े हैं
सँग है झंझावात सखी, झेल रहे आघात सखी!
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+रमेशराज , 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-2020001
मो.-9634551630
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