"मत घाव इतने दे हमें" रमेशराज की यमकदार तेवरियाँ
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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....1.
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आदमी को आदमी से
खिलखिलाती जि़न्दगी से ऐसे मत तोडि़ए।
हँसता है अंधकार
रौशनी को रौशनी से ऐसे मत तोडि़ए।
कृष्ण हो तो आपदा में
आज नाते द्रौपदी से ऐसे मत तोडि़ए।
दीप से जलाओ दीप
खुशियों को
खुशियों से ऐसे मत तोडि़ए।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....2
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लुटतीं
अबलाएँ बँगले में
ऐसे चर्चाएँ बँगले में, गुण्डे मुस्काएँ बँगले में।
इज्जत वाले नारी-तन को
लूट-लूट खाएँ बँगले
में, गुण्डे मुस्काएँ बँगले में।
बेच रही हैं स्वाभिान को
भोली कन्याएँ बँगले में, गुण्डे मुस्काएँ बँगले में।
आज सनातन आदर्शों की
होतीं हत्याएँ बँगले में, गुण्डे मुस्काएँ बँगले में।
भूख बेबसी निर्धनता की
सिसकें
कविताएँ बँगले में, गुण्डे मुस्काएँ बँगले में।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....3
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बलम छोड़ हठ-‘छत हो
गाटर-पटिया की’
मेरी बात मान लै अब तू छत्ति तान लै टटिया की।
चोरी की बिजली संकट को लायेगी
ज्यादा दिन तक छुपी रहै सुन ये तरकीबन कटिया की।
बिछा चद्दरा हम-तुम सोयें धरती पर
अपने घर दामाद पधारौ करि जुगाड़ तू खटिया की।
बुरे दिनों का हल शराब से क्या निकले
फिर पी आयौ बालम पउआ तूने हरकत घटिया की।
सुन बच्चों के संग बलम मैं भी-तू भी
बता करैगौ फाँकें कितनी खरबूजे की बटिया की।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....4.
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प्यार का जलसा गया, जल-सा गया
छाँव भी शीतल नहीं, नित ताप दे चन्दन यहाँ।
पीर ही नित पी रही अब जिन्दगी
प्रीति के-सदरीति के
सब जल गये मधुवन यहाँ।
आरजू-जिन्दादिली,
जिन्दा दली
आज है सिसकन यहाँ सुबकन यहाँ, उलझन यहाँ।
क्या करें आँखों-तले तम-सा घिरा
थामते सर जन यहाँ, मिलता नहीं सर्जन यहाँ।
क्या खिलेंगी बेकली में वे कली
जब सिसकती-सी मिले हर
फूल में चटकन यहाँ।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....5.
आज भी तमराज का तम राज ही
देश के बैरिन गिरी आगाज पै आ गाज ही।
जागि री! अब जा गिरी क्यों
ओ प्रभा
बुझ गये सब दीप इत पहना तिमिर ने ताज ही।
राम के इस राज पर कर नाज मत
आज भूखे पेट को पैदा नहीं जब नाज ही।
आग में मत जल, जला मत तू
हमें
वक्ष पर झेला नहीं ये जलजला यूँ आज ही।
रेप की सम्भावना, समभाव ना
खल न समझेगा तुझे वो लूट लेगा लाज ही।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....6.
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पर खा गया धोखा बहुत परखा उसे
इसलिए उसने ठगा मुस्कान में छल था घना।
हर दीप को कर वार्ता वो वारता
तब विरल होता सरल छाया हुआ तम-सा घना।
दुःख-दर्द यह अवकाश ले,
अब काश ले-
रूप मीठी मुस्कराहट-से भरे सुख का घना।
नित जान अटकी अब्र ही में अब रही
रूठ क्यों मुझसे गया है आजकल मेघा घना।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....7.
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मर-मर हमीं कर भर रहे,
हम चोर हैं
शासन दबोचने आ हमें, अब आह में भी आह है।
अब जो कि कामी राग, का मीरा गहै?
पद वो रचें हैं आजकल जिनमें विकट धन-चाह है?
खल-वन्दना कविराज ले,
कबिरा जले
जन-दर्द की परवाह ना
हर मंच से पर वाह है।
गहरा हमें सदमा लगे गह राह को
अब कौन के बल पर चलें, मन बीच केवल दाह है।
मंजिल जिधर को, ना बही अब नाव ही
हर आदमी अब डूबती-सी नाव का मल्लाह है।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....8.
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तुझको परायी पीर में क्या-क्या दिखा
जब सब कथा तूने सुनी, क्या सबक था इतना बता?
अब खा सके तो प्राण खा तू खास के
इस आमजन को बींध्कर क्या सुख मिला इतना बता?
आति रुष्ट है तुझ से प्रजा, पर जा न तू
तेरा सुखद अंजाम क्यूँ यूँ बद हुआ इतना बता?
‘मैं मीत हूँ’ यह
सोच ले, सँग सो चले
ऐ हमसफर क्या साथ तू देगा निभा इतना बता?
प्यासे खगों ने जा नदी पर जान दी
फिर क्या वहाँ पर प्यास को जल ने ठगा इतना बता?
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....9.
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रसखान की विष से भरी रस-खान ही
मनुहार में मनु हारता नित जीतता शैतान ही।
अबला जहाँ, अब लाज
हाँ वो लूटता
अब तो दरिन्दे की तरह उसकी दिखे पहचान ही?
मैं भेद इतना ला सका उस लाश का
वो थी दुःखों की ब्याहता औ’ नाम था मुस्कान ही।
डर है न कर दे खून ही अब हे प्रभो!
है वान-खंजर वो लिये,
वो आज भी हैवान ही।
मैं हीन अब केवल, न अब के बल रहा
पर आज भी यदि खल लड़ा होगा बहुत हैरान ही।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....10.
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अब मौत दामन थाम ही ले तो भला
गहरा मही पर दर्द-दुःख, गह राम ही ले तो भला।
अब पाप अबला कोख ले, खल को खले
खल की कहानी पर सुखद अंजाम ही ले तो भला।
आशा न मन, आसान मन
कैसे रहे
इस आपदा में धीर से मन काम ही ले तो भला।
सुन नाखुदा, तू ना
खुदा इतना समझ
बैठूँ अगर मैं नाव में, तू दाम ही लो तो भला।
तू घाव इतने देह में मत दे हमें
मधु से भरे बस प्यार के पैगाम ही ले तो भला।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....11.
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तुमने खुशी का ली कहो? इत ग़म सही
सुख-सम्पदा पा ली कहो?
इत वेदना पाली चलो।
क्रान्ति की लपटें उठें कल भूख से
अब मात ही खा ली चलो, अब आग से खाली चलो।
जो जि़न्दगी गाली कभी मल्हार-सी
सब कह रहे उस जिन्दगी को आजकल गाली चलो।
अब कैद है मौसम सुखद इस देश के
ऋतु मधु-भरी आ ली चलो,
अब बाग से आली चलो।
ना ली कभी हमने तुम्हारी सभ्यता
तुमने अगर कीचड़ भरा, तुम बन गये नाली चलो।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....12.
अब को हरा सकता बना जो कोहरा
औकात में रहना महज सूरज सिखा सकता उसे।
जित धूप चढ़ उतरै नहीं, उत रैन ही
अब एक दीपक लाइये वो ही हरा सकता उसे।
पीहर गयी, पी हर गयी
दुःख को खुशी
मैं लालची ससुराल में कब तक बचा सकता उसे।
मौसम यही कल दे रहा था कल घनी
मैं काश पूरी जिन्दगी मन में बसा सकता उसे।
बंजर भये, हम फूल-से बन जर गये
तब प्रेम
था महँका हुआ, अब क्या बता सकता उसे।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....13.
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उफ़ यूँ हरण, कपड़े बचे
बस नाम को
हमला हुआ अब लाज पै, अबला जपै बस राम को।
हर राग अब तौ हीन-सा, तौहीन-सा
हर मन तरसता आजकल, सुख से भरे पैगाम को।
क्या धर्म ही? जो धर मही
जन गोदता
इस मुल्क के पागल कहें सत्कर्म कत्ले-आम को।
सुख बन्द हैं, मन बन
दहें शोला सदृश
हर ओर हाहाकार हैं अब जन तालाशें काम को।
खुश आदतें बद ले सभी, बदले सभी
बस घाव ही मिलने सघन आगाज से अंजाम को।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....14.
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कल पीर में होंगे सभी मंजर यहाँ
पलटी न बाजी गर यहाँ, दें मात बाजीगर यहाँ।
अब कौरवो! हम माँगते
हैं कौर वो
जो आपके गोदाम में कल को रहे सड़कर यहाँ।
ऐ कीचको! हम पै न फैंकों
कीच को
कुंजर सरीखे भीम ही अब भी मही पर वर यहाँ।
है मौन भीषम आज भी-सम मौन ही
तुम द्रौपदी का साथ दो बनकर सभी गिरिधर यहाँ।
हम जी तभी पायें रहे सँग जीत-भी
हम चक्रब्यूहों में घिरे दिन-रात को अक्सर यहाँ।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....15.
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नाज हमको पीपलों की छाँव पर
आँधियाँ बरसें न आ पर अब हमारे गाँव पर।
आजकल हैं कटुकही पर खुश सभी
कोयलें बेहद फिदा हैं आज कों कों काँव पर।
और भी झेलो नयी बीमारियाँ
वैद्य जब गुड़ को दवा कह दे रहा है आँव पर।
छंद का स्वर का दिखे अब अन्त में
कर रहे तुकबंदियाँ ‘हाँ’ की जगह हम ‘हाँव’ पर।
तुझको विहँस वह ओक लेगा ओ कली
नालियों में जायगी गिर देवता के पाँव पर।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....16.
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जिस दिन अपने पर आयेगी
आदमखोरों को खायेगी शोषित पीडि़त दलित जि़न्दगी।
हट जाएगा कल को पतझड़
गीत वसंती तब गायेगी शोषित पीडि़त दलित जि़न्दगी।
भले राह यह कठिन जटिल है
कल को खुशहाली लायेगी शोषित पीडि़त दलित जि़न्दगी।
आज राजपथ माना चर्चित
कल अखबारों में छायेगी शोषित पीडि़त दलित जि़न्दगी।
ग़ज़लकार मत ग़ज़ल मानना
बनी ‘तेवरी’ गुर्रायेगी शोषित पीडि़त दलित जि़न्दगी।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....17.
किसी ने चोट पहुँचायी
कभी जो आँख भर आयी तो हमने तेवरी लिख दी।
घने संघर्ष के दौरां
जि़न्दगी जब भी मुस्कायी तो हमने तेवरी लिख दी।
निर्वसन देखकर अबला
किसी के मन ग़ज़ल भायी तो हमने तेवरी लिख दी।
बहू ससुराल में आकर
सिसकती रोती जब पायी तो हमने तेवरी लिख दी।
किसी बीमार सूरज से
धूप अनुबन्ध कर आयी तो हमने तेवरी लिख दी।
+रमेशराज
|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है तेवरी ....18.
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विषैली बात पर कहिए
टीसते हालात पर अब तेवरी कहिए।
दुखी है आज मजदूरिन
उसके जर्जर गात पर अब तेवरी कहिए।
परिन्दे परकटे दिखते
टीसते जज्बात पर अब तेवरी कहिए।
नहीं चर्चा वसंतों की
सूखे टहनी पात पर अब तेवरी कहिए।
छला है देवताओं ने
आदमी की जात पर अब तेवरी कहिए।
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001
मोबा. – 9634551630
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