मेरी कृतियाँ

Friday 19 February 2016

कलेजे पर रखे पत्थर {तेवरियाँ }

|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' -----1.
सब लुटेरे आज रहबर हो गये
साँप के वंशज सपेरे आज रहबर हो गये।
ताल की मछली बना अब आदमी
जाल फैलाते मछेरे आज रहबर हो गये।
हर तरफ से देश पूरा जल रहा
हर तरह से अग्नि-घेरे आज रहबर हो गये।
पूजते हम देवताओं-सा इन्हें
जाँ के दुश्मन तेरे-मेरे आज रहबर हो गये।
निर्धनों को ये धनिक कहने लगे
भूख के ऐसे चितेरे आज रहबर हो गये।
+ रमेश राज +

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+|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' ----2.
अधरों पै प्यास देख के
सच को उदास देख के हम हो गये उदास।
खुशियों के राग थे जहाँ
दुःख सानुप्रास देख के हम हो गये उदास।
आँखों में अश्रु थे मगर
अधरों पै हास देख के हम हो गये उदास।
चिंगारियों के पास में
सूखी कपास देख के हम हो गये उदास।
अब वासना की कुन्ज में
कान्हा का रास देख के हम हो गये उदास।
सदभाव की भाषा लिये
क़ातिल को पास देख के हम हो गये उदास।
मुंसिफ का न्याय क्या कहें?
झूठों का दास देख के हम हो गये उदास।
+ रमेशराज +

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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' ---3.
कैसे ब्याही जाय बेटी बिना दहेज के
घायल मन की पीर अब किसे सुनायी जाय।
बेटा माँगे फीस, पत्नी साड़ी माँगती
घर की इज्जत किस तरह आज बचायी जाय।
पारबती की लाज लूटी थानेदार ने
किस थाने में अब कहो रपट लिखायी जाय।
आस्तीन का साँप जीवन-भर बनकर जिया
गर्दन पर उस मित्र के छुरी चलायी जाय।
+ रमेशराज +

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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ....4 .
आपने नूर की क्या नदी लूट ली
गीत के नैन की रौशनी लूट ली। जो बची थी खुशी वो खुशी लूट ली।।
न्याय की, सत्य की, आस थी आपसे
आपने तो नहीं द्रौपदी लूट ली? जो बची थी खुशी वो खुशी लूट ली??
ऐ कहारो कहो क्या हुआ हादिसा
आपने तो नहीं पालकी लूट ली? जो बची थी खुशी वो खुशी लूट ली??
क्या यही आपकी है समालोचना
शब्द के अर्थ की जि़न्दगी लूट ली। जो बची थी खुशी वो खुशी लूट ली।।
+ रमेशराज +

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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' ---5 .
आदमी खो गया आदमी खोजिए
तीरगी है घनी रौशनी खोजिए। जि़न्दगी खोजिए।।
मीत के प्रीति के गीत के गाँव में
कौन यूँ बो गया बेकली खोजिए। जि़न्दगी खोजिए।।
देह है गेह है साँस हैं प्राण हैं
आत्मा ही कहीं खो गयी खोजिए। जि़न्दगी खोजिए।।
राम का नाम ले या खुदा बोल के
कौन ने ध्रर्म की लाश की खोजिए। जि़न्दगी खोजिए।
+ रमेशराज +

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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' ---6 .
कलेजे पर रखे पत्थर
हमारी आँख में जलधर सुनो सरकार अब भी हैं।
कई रिश्ते बचे पुल-से
उन्हें पर टूटने के डर सुनो सरकार अब भी हैं।
हमारी आस्था घायल
हमारे सोच खूँ से तर सुनो सरकार अब भी हैं।
पिघल कर रौशनी देंगे
हमारे मोम जैसे स्वर सुनो सरकार अब भी हैं।
जहाँ भूकम्प के खतरे
वहाँ पर लकडि़यों के घर सुनो सरकार अब भी हैं।
प्रश्न हल हो नहीं सकते
तुम्हारे सिरफिरे उत्तर सुनो सरकार अब भी हैं।
+ रमेशराज +

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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' ---7 .
हमारे द्वार पर ताले
किसी हम अहम् को पाले न पहले थे न अब ही हैं।
चोट अपमान की मत दो
हमारे आचरण काले न पहले थे न अब ही हैं।
आप बन्दूक मत बनिए
हमारे हाथ में भाले न पहले थे न अब ही हैं।
खुले आकाश जैसे हम
इरादे बंकरों वाले न पहले थे न अब ही हैं।
+ रमेशराज +

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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' ------8.
तुम्हीं ने काट डाले पर
नहीं तो रुख बदलते बन्धु हम चलती हवाओं के।
गले मिल घौंप मत चाकू
यकीनन टूट जाएँगे सभी पुल आस्थाओं के।
न झुकने से रहे हम भी
बहें अब खून के दरिया भले ही भावनाओं के।
जहाँ जज्बात की खिल्ली
थाल अच्छे नहीं लगते वहाँ पर अर्चनाओं के।
+ रमेशराज +

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|| तेवरी ग़ज़ल नहीं || प्रस्तुत है  ' तेवरी ' ---
-------------------------------------------20.
क्या कहेंगे आज के इस आदमी को
कह रहा है घोर तम ये रौशनी को। हमारी हर खुशी को।।
मौत का इल्जाम अब मत मौत को दो
जि़न्दगी ही खा गयी है जि़न्दगी को। हमारी हर खुशी को।।
आजकल आदर्श के प्रतिमान हैं वे
जो समन्दर पी गये सच की नदी को। हमारी हर खुशी को।।
क्रान्ति का पर्याय होगी चीर खिंचते

खोलने तो केश दो इस द्रौपदी को। हमारी हर खुशी को।।
+रमेशराज  

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