Monday 9 August 2021

तेवरी

 *मुक्तक विन्यास में तेवरी*

**********

फूल मालाएँ चढ़ाए जा रहे हैं

ढोल-ढोलक हम बजाए जा रहे हैं।

एक कोने में धकेले राम-लक्ष्मण

रावणों के गीत गाए जा रहे हैं।।


हाथ में पत्थर उठाए जा रहे हैं

क्रोध की मुद्रा बनाए जा रहे हैं।

हम नहीं हैं आदमी, बस भीड़ हैं हम

देश को पल-पल रुलाए जा रहे हैं।।


आग नफ़रत की लगाए जा रहे हैं

बस्तियां सच की जलाए जा रहे हैं।

मुल्क के बलवान की अब ढाल बनकर

हर निबल को हम झुकाए जा रहे हैं।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

**********

स्याही-दर-स्याही दिखती है

हर ओर तबाही दिखती है।


'सच' फाँसी पर लटकाने को

हर एक गवाही दिखती है।


रिश्तों में अब सन्नाटों की

नित आवाजाही दिखती है।


यह नियति झेलती आज खुशी

दुःख के घर ब्याही दिखती है।

*रमेशराज*

तेवरी

 *मुक्तक विन्यास में तेवरी*

************

कविता में कवि-कौशल देख

राजनीति का दंगल देख।

नया रूप धारे है सत्य

शब्दों में छल ही छल देख।।


टाट बनाया मखमल देख

सोना है अब पीतल देख।

नाम इसी का प्यारे जीत

संख्याओं का टोटल देख।।


मल जैसे हैं निर्मल देख

तरह-तरह के पागल देख।

जो कहते थे बुरी शराब

हाथ लिए हैं बोतल देख।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

**********

ये नये दौर की देशभक्ति

नफ़रत फैली हर ओर।अब शोर।।


जिनकी सरपंचों में गिनती

सारे के सारे चोर।अब शोर।।


जो विश्व-शांति की बात करे

उसने ही मारे मोर।अब शोर।।


करुणामय रूप दिखाकर वो

बन बैठा आदमखोर।अब शोर।।


फिर अंधकार छलने आया

मत बोलो इसको भोर।अब शोर।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

**********

गिरगिट से भी तुलना फीकी

अब देख सियासी रंग।सब दंग।।


जो हर उलझन को सुलझाए

है वही व्यवस्था भंग। सब दंग।।


सच को बदसूरत बता रहे

जो नकटे बूचे नंग।सब दंग।।


धावक की सूची में अब हैं

दुनिया के सभी अपंग।सब दंग।।


कहने-भर को है नाम नदी

जल की उठती न तरंग।सब दंग।।

*रमेशराज

तेवरी

 *मुक्तक विन्यास में एक तेवरी*

************

धर्म के ये स्वर नये

और फुँकने घर नये।


आजकल उन्माद के

उग रहे हैं पर नये।।


देख बाजीगर नये

दैत्य दूषण खर नये।


कर रहे हैं विषवमन

आज के शंकर नये।।


आज ये मंजर नये

बढ़ रहे हैं डर नये।


क्रूर कामी लालची

बन गये रहबर नये।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

************

ये लोकतंत्र के खम्बे हैं

बोलें मखमल को टाट। ये भाट।।


कहते हैं मोहनभोग किया

जूठी पत्तल को चाट। ये भाट।।


इस युग के ये हैं कोरोना

इनका है रूप विराट। ये भाट।।


नित रहे झूठ के पाँव दबा

दें सच की गर्दन काट। ये भाट।।


जनता को पीसें गेहूं-सा

लगते चाकी के पाट। ये भाट।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *रति वर्णवृत्त में तेवरी* 

**********

खल हैं सखी

मल हैं सखी।


जन से करें

छल हैं सखी।


सब विष-भरे

फल हैं सखी।


सुख के कहाँ

पल हैं सखी।


नयना हुए

नल हैं सखी।

*रमेशराज

तेवरी

 रमेशराज की एक तेवरी 

**********

कोई तो किस्सा पावन हो, वृन्दावन हो 

अब चैन मिले मन को कुछ तो |


तहखानों बीच न जीवन हो, घर-आँगन हो 

सुख के पायें साधन कुछ तो |


अपमान नहीं अब वन्दन हो, अभिनन्दन हो 

ले आ रोली-चन्दन कुछ तो |


वो चाहे हर सू क्रन्दन हो, घायल मन हो 

कम करता दुष्ट हनन कुछ तो |


अब अग्नि-कथा का वाचन हो, अरिमर्दन हो 

स्वर में ला तीखापन कुछ तो |

+रमेशराज

तेवरी

 **तेवरी*

**********

दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं

मीरा हो या रसखान। नादान।।


जो निर्बल का बल बनता है

उसके वश में भगवान। नादान।।


तुझको विश्वास मुखौटों पे

सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।


ये सम्प्रदाय का चक्कर है

तू धर्म इसे मत मान। नादान।।


पर्दे के पीछे प्रेत यही

इन देवों को पहचान। नादान।।


जो चुगलखोर है, बच उससे

रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।


तू द्वैत जान, अद्वैत समझ

व्रत का मतलब रमजान। नादान।।

*रमेशराज*

तेवरी

  तेवरी 

-----------------------------------

पूरे ढोर, नंग-चोर बात करें धर्म की

सैंधबाज-घूँसखोर बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की |


घर पै बढ़ायें बोझ, गाँठ काटें बाप की

पूत ऐसे चारों ओर बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की |


रखते यकीन हीन-ये कमीन छल में 

झूठ के पकडि़  छोर बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की | 


आज तो रमेशराज बगुले-गिद्ध-बाज 

बनते कपोत-मोर, बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की |

+ रमेशराज +