Tuesday 9 November 2021

रमेशराज की 11 तेवरियाँ

 रमेशराज की 11 तेवरियाँ

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1.

दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं

मीरा हो या रसखान। नादान।।


जो निर्बल का बल बनता है

उसके वश में भगवान। नादान।।


तुझको विश्वास मुखौटों पे

सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।


ये सम्प्रदाय का चक्कर है

तू धर्म इसे मत मान। नादान।।


पर्दे के पीछे प्रेत यही

इन देवों को पहचान। नादान।।


जो चुगलखोर है, बच उससे

रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।


तू द्वैत जान, अद्वैत समझ

व्रत का मतलब रमजान। नादान।।

*रमेशराज*


2.

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सुलझाने बैठें क्या गुत्थी

जब इसका ओर न छोर। हर ओर।।


करनी थी जिन्हें लोकरक्षा

बन बैठे आदमखोर।हर ओर।।


सड़कों पे पउआबाज़ दिखें

लम्पट-गुण्डों का शोर।हर ओर।।


सद्भावों की नदियां सूखीं

अब ग़ायब हुई हिलोर।हर ओर।।


कोयल की कूक मिले गुमसुम

नित नाचें आज न मोर।हर ओर।।

*रमेशराज*


3.

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छल का बल का ये दौर मगर

तू अपने नेक उसूल। मत भूल।।


वह मुस्कानों से ठग लेगा

उसके हाथों में फूल। मत भूल।।


ये जंगल ही कुछ ऐसा है

मिलने हैं अभी बबूल। मत भूल।।


कोशिश कर उलझन सुलझेगी

मिल सकता कोई टूल। मत भूल।।


करले संघर्ष, जीत निश्चित

बदले सब कुछ आमूल। मत भूल।।

*रमेशराज*


4.

*तेवरी*

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जो सच की खातिर ज़िन्दा है

उसका ही काम तमाम। हे राम!!


खुशियों पर नज़र जिधर डालें

हर सू है क़त्लेआम। हे राम!!


जो रखता चाह उजालों की

उसके हिस्से में शाम। हे राम!!


जिनको प्यारी थी आज़ादी

बन बैठे सभी ग़ुलाम। हे राम!!


कोई छलिया, कोई डाकू

अब किसको करें प्रणाम।हे राम!!

*रमेशराज*


5.

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दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं

मीरा हो या रसखान। नादान।।


जो निर्बल का बल बनता है

उसके वश में भगवान। नादान।।


तुझको विश्वास मुखौटों पे

सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।


ये सम्प्रदाय का चक्कर है

तू धर्म इसे मत मान। नादान।।


पर्दे के पीछे प्रेत यही

इन देवों को पहचान। नादान।।


जो चुगलखोर है, बच उससे

रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।


तू द्वैत जान, अद्वैत समझ

व्रत का मतलब रमजान। नादान।।

*रमेशराज*


6.

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बाक़ी तो साफ़-सफ़ाई है

बस पड़ी हुई है पीक।सब ठीक।।


घबरा मत नाव न डूबेगी

बस छेद हुआ बारीक।सब ठीक।।


जीना है इन्हीं हादसों में

तू मार न ऐसे कीक।सब ठीक।।


दीखेगा साँप न तुझे कभी

बस पीटे जा तू लीक।सब ठीक।।


उसपे तेरी हर उलझन का

उत्तर है यही सटीक।सब ठीक।।

*रमेशराज*


7.

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अबला की लाज लूटने को

रहते हैं सदा अधीर। हम वीर।।


बलशाली को नित शीश झुका

निर्बल पे साधें तीर। हम वीर।।


उस मल को निर्मल सिद्ध करें

जिस दल की खाते खीर। हम वीर।।


हम से ही ज़िन्दा भीड़तंत्र

सज्जन को देते पीर। हम वीर।।


गरियाने को कविता मानें

हैं ऐसे ग़ालिब-मीर। हम वीर।।


जिस बस्ती में सद्भाव दिखे

झट उसको डालें चीर। हम वीर।।


तुम ठाठ-बाट पे मत जाओ

अपना है नाम फ़कीर। हम वीर।।

*रमेशराज*


8.

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तब ही क़िस्मत तेरी बदले

जब रहे हौसला संग। लड़ जंग।।


आनन्द छंद मकरंद लुटे

 सब दीख रहा है भंग। लड़ जंग।।


कुछ तो सचेत हो जा प्यारे

वर्ना जीवन बदरंग। लड़ जंग।।


रणकौशल को मत भूल अरे

इतना भी नहीं अपंग। लड़ जंग।।


फिर तोड़ भगीरथ हर पत्थर

तुझको लानी है गंग। लड़ जंग।।

*रमेशराज*


9.

*तेवरी*

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जिसमें दिखती हो स्पर्धा

अच्छी है ऐसी होड़। मत छोड़।।


नफ़रत के बदले प्रेम बढ़ा

बिखरे रिश्तों को जोड़। मत छोड़।।


गद्दार वतन में जितने हैं

नीबू-सा उन्हें निचोड़। मत छोड़।।


अति कर बैठे हैं व्यभिचारी

हर घड़ा पाप का फोड़।मत छोड़।।


चलना है नंगे पांव तुझे

जितने काँटे हैं तोड़।मत छोड़।।


वर्ना ये कष्ट बहुत देगा

पापी की बाँह मरोड़।मत छोड़।।

*रमेशराज*


10.


*तेवरी*

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कल तेरी जीत सुनिश्चित है

रहना होगा तैयार। मत हार।।


माना तूफ़ां में नाव फँसी

नदिया करनी है पार।मत हार।


इस तीखेपन को क़ायम रख

हारेगा हर गद्दार। मत हार।।


पापी के सम्मुख इतना कर

रख आँखों में अंगार। मत हार।।


तू ईसा है-गुरु नानक है

तू सच का है अवतार। मत हार।।


होता है अक्सर होता है

जीवन का मतलब ख़ार। मत हार।।


साहस को थोड़ा ज़िन्दा रख

पैने कर ले औजार। मत हार।।


दीपक-सा जलकर देख ज़रा

ये भागेगा अँधियार। मत हार।।

*रमेशराज*


11.

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तूफ़ां के आगे फिर तूफ़ां

ये नाव न जानी पार। इसबार।।


जीते ठग चोर जेबकतरे

हम गए बाजियां हार।इसबार।।


हर तीर वक्ष पर सहने को

रहना होगा तैयार।इसबार।।


उसका निज़ाम है चीखो मत

वर्ना पड़नी है मार।इसबार।।


ये खत्म नहीं होगी पीड़ा

कर चाहे जो उपचार।इसबार।।


मिलने तुझको अब तो तय है

फूलों के बदले खार।इसबार।


तूने सरपंच बनाये जो

निकले सारे गद्दार।इसबार।।


परिवर्तन वाले सोचों की

पैनी कर प्यारे धार। इसबार।।

*रमेशराज*

Monday 9 August 2021

तेवरी

 *मुक्तक विन्यास में तेवरी*

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फूल मालाएँ चढ़ाए जा रहे हैं

ढोल-ढोलक हम बजाए जा रहे हैं।

एक कोने में धकेले राम-लक्ष्मण

रावणों के गीत गाए जा रहे हैं।।


हाथ में पत्थर उठाए जा रहे हैं

क्रोध की मुद्रा बनाए जा रहे हैं।

हम नहीं हैं आदमी, बस भीड़ हैं हम

देश को पल-पल रुलाए जा रहे हैं।।


आग नफ़रत की लगाए जा रहे हैं

बस्तियां सच की जलाए जा रहे हैं।

मुल्क के बलवान की अब ढाल बनकर

हर निबल को हम झुकाए जा रहे हैं।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

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स्याही-दर-स्याही दिखती है

हर ओर तबाही दिखती है।


'सच' फाँसी पर लटकाने को

हर एक गवाही दिखती है।


रिश्तों में अब सन्नाटों की

नित आवाजाही दिखती है।


यह नियति झेलती आज खुशी

दुःख के घर ब्याही दिखती है।

*रमेशराज*

तेवरी

 *मुक्तक विन्यास में तेवरी*

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कविता में कवि-कौशल देख

राजनीति का दंगल देख।

नया रूप धारे है सत्य

शब्दों में छल ही छल देख।।


टाट बनाया मखमल देख

सोना है अब पीतल देख।

नाम इसी का प्यारे जीत

संख्याओं का टोटल देख।।


मल जैसे हैं निर्मल देख

तरह-तरह के पागल देख।

जो कहते थे बुरी शराब

हाथ लिए हैं बोतल देख।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

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ये नये दौर की देशभक्ति

नफ़रत फैली हर ओर।अब शोर।।


जिनकी सरपंचों में गिनती

सारे के सारे चोर।अब शोर।।


जो विश्व-शांति की बात करे

उसने ही मारे मोर।अब शोर।।


करुणामय रूप दिखाकर वो

बन बैठा आदमखोर।अब शोर।।


फिर अंधकार छलने आया

मत बोलो इसको भोर।अब शोर।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

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गिरगिट से भी तुलना फीकी

अब देख सियासी रंग।सब दंग।।


जो हर उलझन को सुलझाए

है वही व्यवस्था भंग। सब दंग।।


सच को बदसूरत बता रहे

जो नकटे बूचे नंग।सब दंग।।


धावक की सूची में अब हैं

दुनिया के सभी अपंग।सब दंग।।


कहने-भर को है नाम नदी

जल की उठती न तरंग।सब दंग।।

*रमेशराज

तेवरी

 *मुक्तक विन्यास में एक तेवरी*

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धर्म के ये स्वर नये

और फुँकने घर नये।


आजकल उन्माद के

उग रहे हैं पर नये।।


देख बाजीगर नये

दैत्य दूषण खर नये।


कर रहे हैं विषवमन

आज के शंकर नये।।


आज ये मंजर नये

बढ़ रहे हैं डर नये।


क्रूर कामी लालची

बन गये रहबर नये।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *तेवरी*

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ये लोकतंत्र के खम्बे हैं

बोलें मखमल को टाट। ये भाट।।


कहते हैं मोहनभोग किया

जूठी पत्तल को चाट। ये भाट।।


इस युग के ये हैं कोरोना

इनका है रूप विराट। ये भाट।।


नित रहे झूठ के पाँव दबा

दें सच की गर्दन काट। ये भाट।।


जनता को पीसें गेहूं-सा

लगते चाकी के पाट। ये भाट।।

*रमेशराज*

तेवरी

 *रति वर्णवृत्त में तेवरी* 

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खल हैं सखी

मल हैं सखी।


जन से करें

छल हैं सखी।


सब विष-भरे

फल हैं सखी।


सुख के कहाँ

पल हैं सखी।


नयना हुए

नल हैं सखी।

*रमेशराज

तेवरी

 रमेशराज की एक तेवरी 

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कोई तो किस्सा पावन हो, वृन्दावन हो 

अब चैन मिले मन को कुछ तो |


तहखानों बीच न जीवन हो, घर-आँगन हो 

सुख के पायें साधन कुछ तो |


अपमान नहीं अब वन्दन हो, अभिनन्दन हो 

ले आ रोली-चन्दन कुछ तो |


वो चाहे हर सू क्रन्दन हो, घायल मन हो 

कम करता दुष्ट हनन कुछ तो |


अब अग्नि-कथा का वाचन हो, अरिमर्दन हो 

स्वर में ला तीखापन कुछ तो |

+रमेशराज

तेवरी

 **तेवरी*

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दोनों ही कान्हा के प्रिय हैं

मीरा हो या रसखान। नादान।।


जो निर्बल का बल बनता है

उसके वश में भगवान। नादान।।


तुझको विश्वास मुखौटों पे

सच्चाई कुछ तो जान। नादान।।


ये सम्प्रदाय का चक्कर है

तू धर्म इसे मत मान। नादान।।


पर्दे के पीछे प्रेत यही

इन देवों को पहचान। नादान।।


जो चुगलखोर है, बच उससे

रख यूँ मत कच्चे कान। नादान।।


तू द्वैत जान, अद्वैत समझ

व्रत का मतलब रमजान। नादान।।

*रमेशराज*

तेवरी

  तेवरी 

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पूरे ढोर, नंग-चोर बात करें धर्म की

सैंधबाज-घूँसखोर बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की |


घर पै बढ़ायें बोझ, गाँठ काटें बाप की

पूत ऐसे चारों ओर बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की |


रखते यकीन हीन-ये कमीन छल में 

झूठ के पकडि़  छोर बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की | 


आज तो रमेशराज बगुले-गिद्ध-बाज 

बनते कपोत-मोर, बात करें धर्म की , सत्य-भरे मर्म की |

+ रमेशराज +