Thursday 25 May 2017

लोकशैली में तेवरी




लोकशैली में तेवरी 
----------------------------
नारे थे यहाँ स्वदेशी के
हम बने विदेशी माल , सुन लाल !
अपने हैं ढोल नगाड़े पर
ये मढ़े चीन की खाल , सुन लाल !
हम गदगद अपने बागों में
अब झूले चीनी डाल , सुन लाल |
हम वो संगीत शास्त्री हैं
स्वर में अमरीकी ताल , सुन लाल !

+रमेशराज

लोकशैली में तेवरी




लोकशैली में  तेवरी 
--------------------------------------
सडकों पै मारपिटाई करते बर्बर आतताई
होते सरेआम उत्पात दरोगा  ठाड़ो  देखै |
हाथों में छुरी तमंचे जन को लूट रहे नित गुंडे
गोदें चाहे जिसका गात दरोगा ठाड़ो देखै |
गलियों में खड़े लफंगे ताकें नारीतन को नंगे
अब है चीरहरण दिनरात दरोगा ठाड़ो देखै |
देती है आग दिखाई बस्ती को फूंकें दंगाई
धर्म पै अति हिंसक जज़्बात दरोगा ठाड़ो देखै |
+रमेशराज


तेवरी




तेवरी
-------------------
जनता की थाली बम भोले
अब खाली-खाली बम भोले |
श्रम जिसके खून-पसीने में
उसको ही गाली बम भोले |
इस युग के सब गाँधीवादी
कर लिए दुनाली बम भोले |
अब केवल दिए सियासत ने
हकखोर-मवाली बम भोले |
छलिया की सूरत संतों-सी
अति भोली-भाली बम भोले |
अबला की चीख़ें सुनी नहीं
बस गाय बचा ली बम भोले |

+रमेशराज   

तेवरी




तेवरी 
--------------------------
मैं भी अगर भाट बन जाता
गुण्डों को सेवक बतलाता |
कोयल के बदले कौवों को
सच्चा स्वर-सम्राट सुझाता |
सारे के सारे खलनायक
मेरे होते भाग्य-विधाता |
ज़हर घोलता नित समाज में
सज्जन को पल-पल गरियाता |
धन-दौलत की कमी न होती
पुरस्कार पाकर मुस्काता |

+रमेशराज  

तेवरी




तेवरी 
---------------------
उसकी बातों में जाल नये
होने हैं खड़े बवाल नये |
बागों को उसकी नज़र लगी
अब फूल न देगी डाल नये |
छलना है उसको और अभी
लेकर पूजा के थाल नये |
बिल्डिंग की खातिर ताल अटा
अब ढूंढ रहा वो ताल नये |
आँखों से आँसू छलक रहे
अब और कहें क्या हाल नये |

+रमेशराज 

तेवरी




तेवरी 
------------------
खुशियों के मंजर छीनेगा
रोजी-रोटी-घर छीनेगा |
है लालच का ये दौर नया
पंछी तक के पर छीनेगा |
हम जीयें सिर्फ सवालों में
इस खातिर उत्तर छीनेगा |
वो हमको भी गद्दार बता
कबिरा के आखर छीनेगा |
धरती पर उसका कब्जा है
अब नभ से जलधर छीनेगा |
उसको आक्रोश बुरा लगता
शब्दों से पत्थर छीनेगा |

+रमेशराज  

तेवरी




तेवरी 
------------------------
सूखा का कोई हल देगा
मत सोचो बादल जल देगा |
जो वृक्ष सियासत ने रोपा
ये नहीं किसी को फल देगा |
बस यही सोचते अब रहिए
वो सबको राहत कल देगा |
ये दौर सभी को चोर बना
सबके मुख कालिख मल देगा |
वो अगर सवालों बीच घिरा
मुद्दे को तुरत बदल देगा |
उसने हर जेब कतर डाली
वो बेकल को क्या कल देगा |

+रमेशराज 

तेवरी




तेवरी 
--------------------------
गुलशन पै बहस नहीं करता
मधुवन पै बहस नहीं करता
जो भी मरुथल में अब बदला
सावन पै बहस नहीं करता |
कहते हैं इसे न्यूज़-चैनल
ये जन पै बहस नहीं करता |
है इसीलिये वह तहखाना
आँगन पै बहस नहीं करता |
वो बोल रहा है “ ओम शांति “
क्रन्दन पै बहस नहीं करता |
वो करता धड़ से तुरत अलग
गर्दन पै बहस नहीं करता |
वो मौतों का व्यापारी है
जीवन पै बहस नहीं करता |
वो लिए सियासी दुर्गंधें
चन्दन पै बहस नहीं करता |

+रमेशराज  

तेवरी




तेवरी 
-------------------------
जिनको देना जल कहाँ गये
सत्ता के बादल कहाँ गये ?
कड़वापन कौन परोस गया
मीठे-मीठे फल कहाँ गये ?
जनता थामे प्रश्नावलियां
सब सरकारी हल कहाँ गये ?
जो अरि का सर पल में काटें
उन वीरों के बल कहाँ गये ?
क्या सबको सांप सूंघ बैठा
प्रतिपक्षी सब दल कहाँ गये ?
कल तक तो यहाँ कतारें थीं
चौराहों के नल कहाँ गये ?
तुम दानी कर्ण बने क्यों थे
अब कहते कुण्डल कहाँ गये ?

+रमेशराज  

तेवरी




तेवरी 
----------------------------------
हिंसा से भरा हुआ नारा अब बोले धर्म बचाना है
हर ओर धधकता अंगारा अब बोले धर्म बचाना है |
जो कभी सहारा नहीं बना अपने बूढ़े माँ-बापों का
ऐसा हर लम्पट-आवारा अब बोले धर्म बचाना है |
बस्ती-बस्ती भय पसर रहा, सदआशय थर-थर काँप रहे
संवेगों का चढ़ता पारा अब बोले धर्म बचाना है |
धरती पर बहता खून देख ‘ गौतम ‘ की आँखों में आँसू
हंसों का पापी हत्यारा अब बोले धर्म बचाना है |
गाँधी को गाली ये देता लेता संतों का नाम नहीं
असुर सरीखा-मतिमारा अब बोले धर्म बचाना है |

+रमेशराज    

नये शिल्प में तेवरी




नये शिल्प में तेवरी 
--------------------------
हम चोर लुटेरों ने घेरे
हर सू है चीख-पुकार | इस बार ||
हम घने अंधेरों ने घेरे
दिखती न रौशनी यार | इस बार ||
हम सेठ-कुबेरों ने घेरे
सब शोषण करें अपार | इस बार ||
जल-बीच मछेरों ने घेरे
हम बने मीन लाचार | इस बार ||
सत्ता के घेरों ने घेरे
हर ओर दिखें अंगार | इस बार ||

+रमेशराज  

नये शिल्प में तेवरी




नये शिल्प में तेवरी 
---------------------------------
कोई तो किस्सा पावन हो, वृन्दावन हो
अब चैन मिले मन को कुछ तो |
तहखानों बीच न जीवन हो, घर-आँगन हो
सुख के पायें साधन कुछ तो |
अपमान नहीं अब वन्दन हो, अभिनन्दन हो
ले आ रोली-चन्दन कुछ तो |
वो चाहे हर सू क्रन्दन हो, घायल मन हो
कम करता दुष्ट हनन कुछ तो |
अब अग्नि-कथा का वाचन हो, अरिमर्दन हो
स्वर में ला तीखापन कुछ तो |

+रमेशराज        

तेवरी




तेवरी 
-------------------------
दारू से कुल्ला बम भोले
अब खुल्लमखुल्ला बम भोले |
ईमान बेचकर इस युग में
खुश पण्डित-मुल्ला बम भोले |
हर रोज सियासत मार रही
चाँदों पे टुल्ला बम भोले |
हक़ मांगो, मौन साध जाता
जो बड़ा बतुल्ला बम भोले |
मतलब निकला तो लोग मिले
गालों के फुल्ला बम भोले |
बीबी घर आते क़ैद हुए
जो देखे डुल्ला बम भोले |
जाने किसको अब बांधेगा
रस्सी का गुल्ला बम भोले |

+रमेशराज