*मुक्तक विन्यास में एक तेवरी*
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धर्म के ये स्वर नये
और फुँकने घर नये।
आजकल उन्माद के
उग रहे हैं पर नये।।
देख बाजीगर नये
दैत्य दूषण खर नये।
कर रहे हैं विषवमन
आज के शंकर नये।।
आज ये मंजर नये
बढ़ रहे हैं डर नये।
क्रूर कामी लालची
बन गये रहबर नये।।
*रमेशराज*
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