*मुक्तक विन्यास में तेवरी*
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फूल मालाएँ चढ़ाए जा रहे हैं
ढोल-ढोलक हम बजाए जा रहे हैं।
एक कोने में धकेले राम-लक्ष्मण
रावणों के गीत गाए जा रहे हैं।।
हाथ में पत्थर उठाए जा रहे हैं
क्रोध की मुद्रा बनाए जा रहे हैं।
हम नहीं हैं आदमी, बस भीड़ हैं हम
देश को पल-पल रुलाए जा रहे हैं।।
आग नफ़रत की लगाए जा रहे हैं
बस्तियां सच की जलाए जा रहे हैं।
मुल्क के बलवान की अब ढाल बनकर
हर निबल को हम झुकाए जा रहे हैं।।
*रमेशराज*
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