रमेशराज की एक तेवरी
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कोई तो किस्सा पावन हो, वृन्दावन हो
अब चैन मिले मन को कुछ तो |
तहखानों बीच न जीवन हो, घर-आँगन हो
सुख के पायें साधन कुछ तो |
अपमान नहीं अब वन्दन हो, अभिनन्दन हो
ले आ रोली-चन्दन कुछ तो |
वो चाहे हर सू क्रन्दन हो, घायल मन हो
कम करता दुष्ट हनन कुछ तो |
अब अग्नि-कथा का वाचन हो, अरिमर्दन हो
स्वर में ला तीखापन कुछ तो |
+रमेशराज
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