तेवरी
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मैं भी अगर भाट बन जाता
गुण्डों को सेवक बतलाता
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कोयल के बदले कौवों को
सच्चा स्वर-सम्राट सुझाता
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सारे के सारे खलनायक
मेरे होते भाग्य-विधाता
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ज़हर घोलता नित समाज में
सज्जन को पल-पल गरियाता
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धन-दौलत की कमी न होती
पुरस्कार पाकर मुस्काता
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+रमेशराज
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