मेरी कृतियाँ

Tuesday 8 March 2016

"कुर्सी पर जमौ बिलौटा" रमेशराज की तेवरियाँ



"कुर्सी पर जमौ बिलौटा"  रमेशराज की तेवरियाँ
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रमेशराज की तेवरी .....1.
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है गैडें-सा, आँख चिरौटा
कर्सी पै जमौ बिलौटा, जै नेता की।

रंग बदलता ज्यों करकैंटा
नेता के लगौ मुखौटा, जै नेता की।

भाती राजनीति की खिचड़ी
करता नित घौटम-घौटा, जै नेता की।

चौथ वसूले और कमीशन
पापों से कब ये हौटा, जै नेता की।

जा संसद में ऐसा फूला
हाथी से ज्यादा मौटा, जै नेता की।


रमेशराज की तेवरी .....2.
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समझा उस को जा न! जान न ले वो इस तरह
वान लिये खग मारता, शरम रही है वा न।

देख हुआ मन मुग्ध, तीर निशाने बैठता
चुगलखोर ने कान में, कहा रात-भर का न।

बदल आसुरी रीति, औरों को विष दे न यूँ
शिव-सा विष का पान कर, यश-गौरव तू पा न।

टूटेगा आतंक, टूटेंगी ये बेडि़याँ
कभी क्रान्ति का गान भी ओ कायर तू गा न।

क्यों तू झाँके रोज, कोठी-बँगलों की तरफ
छोटी-सी कुटिया बना, छान उसी पर छा न।


रमेशराज की तेवरी .....3.
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बैठ गयौ किस्मत कौ भट्टा
अब तौ रोटी में बट्टा, जय माता की।

नेता रूप स्वदेशी धारे
घर पै डाॅलर के चिट्टा, जय माता की।

घोटालों का अन्त नहीं है
अंतहीन फैलौ पसरट्टा, जय माता की।

वे कहलाते गाँधीवादी
जिनके हाथों में कट्टा, जय माता की।

गुण्डे और लुटेरों के अब
दीखें बारम्बार झपट्टा, जय माता की।

पहुँच गया संसद के भीतर
अब नेता को देखि सिंगट्टा, जय माता की।

गलबहियों में चोर-दरोगा
थाने के भीतर भी सट्टा, जय माता की।




रमेशराज की तेवरी .....4.
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मंजर बदलें आज, फैले डर-आतंक के
चिडि़याएँ आवाज दें, हमसे लड़ आ, बाज।

हत् दिनकर की लाज, रखें दीप-सम आज हम
रहा वचन अब बच न तू पायेगा तमराज।

जो शोषण-सम्राट, अब न रहें सरताज वो
बांधेंगे हम लोग मिल जनता के सर ताज।

होता शहद समान पाजी को पा जी कहाँ
पाजी की बातें सुने कब तक और समाज।

सहे दर्द ही दर्द, सब अन्तर अन तर रहे
कौन माँगता है यहाँ ऐसी उम्र दराज।


रमेशराज की तेवरी .....5.
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अब नेता के रूप निराले
नित घोटालों में घोटाले, बम-बम भोले।

राम-नाम के ओढ़ दुशाले
घूम रहे हैं विषधर काले, बम-बम भोले।

दिखें आज मंत्री -पूंजीपति
जैसे हों ये जीजा-साले, बम-बम भोले।

आँख लड़ाये दिन-भर बुड्ढा
नित कुडि़यों को दाना डाले, बम-बम भोले।


रमेशराज की तेवरी .....6.
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कोठे पर दिन रात, राँझा लूटे मस्तियाँ
आज हीर-सी ही रसी नगरवधू की बात।

पापी सत्ताईस, अब तो सत्ता-ईश हैं
बद से बदतर हो रहे जनता के हालात।

उधर  बन्द ना जीभ, इधर  वन्दना मिन्नतें
निर्बल के आगे बढ़ी झट खल की औक़ात।

पूरी बस्ती मौन, खून-खराबे पर रही
गुण्डे गोदें गात सब फिल्मी गाने गात।

हवा तेज से तेज, बहुत जबर ही जब रही
देख आँधियों  की दशा काँपे टहनी-पात।


रमेशराज की तेवरी .....7.
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बहती अब उल्टी गंगा
बस्ती में पुजे लफंगा, कुक्कू-कुक्कू।

ऐबीला है सब पर भारी
पंगा नित लेता पंगा, कुक्कू-कुक्कू।

बाराती हैं ऐंडे़-भैंडे़
वर लँगड़ा, दुल्हन छंगा, कुक्कू-कुक्कू।

सैंया से बीबी बोले
नहीं बना के दूंगी अंगा, कुक्कू-कुक्कू।

है छोरा कैसा दीवाना
कुडि़यों को मारै टंगा, कुक्कू-कुक्कू।

वस्त्र-विहीन हुई हीरोइन
होगा हीरो भी नंगा, कुक्कू-कुक्कू।


रमेशराज की तेवरी .....8.
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काया बज्र समान, भले दिखूँ मैं फूल-सी
वैसे सखि मैं तो परी, मगर तोप री जान।

खल से रखती बैर अन्य सभी से प्रेम मैं
वो क्या रोशनदान जो जिसमें रोश न दान।

मैं न आ बरुँ रोय, लूटे कोई आबरू
खींचूँ पापी-अधम  के उसी जगह पर प्रान।

अब अति कायर लोग, तब का तबका और था
आज लुटे यदि लाज तो नाहर-सा गरजा न।

लड़ें लोग हर युद्ध  सहमे-सहमे से बढ़ें
रण में अब बढ़ तान दे, यूँ कोई बढ़ता न।


रमेशराज की तेवरी .....9.
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नेता कर्सी के घैंटा
जैसे हों बूरे के चैंटा, कुक्कू-कुक्कू।

सुन्दरता पर देते भाषण
लूले-लगड़े और कनैटा, कुक्कू-कुक्कू।

दोष निकाल रहे औरों में
यारो एैंडे भैंडे टैंटा, कुक्कू-कुक्कू।

इतनी-सी पहचान रही है
रंग बदल लेते करकैंटा, कुक्कू-कुक्कू।

भौंट सरीखे सारे नेता
भोली जनता सूखा सैंटा, कुक्कू-कुक्कू।


रमेशराज की तेवरी .....10.
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आज धोखे खा रही क्यों जि़न्दगी
अब मुझे हर बार ही, हरवा रही क्यों जि़न्दगी?

हम सफर में साथ हैं ऐ हमसफर
यह दिलासा छल-भरी फरमा रही क्यों जि़न्दगी?

ये जहाँ तक है जहाँ में घूमती
जो अलौकिक है उधर को जा रही क्यों जि़न्दगी?

तू अगर जलवायु तो, जल-वायु दे
आग का किस्सा लिये तू आ रही क्यों जि़न्दगी?

स्वच्छता जा ला उधर , जाला जिधर
सिर्फ निन्दा-गीत ही तू गा रही क्यों जि़न्दगी।


रमेशराज की तेवरी .....11.
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 कह रही तेरी नजर तू यूँ न जर
आज मुझसे काम गर, है का मगर कुछ बोल तो।

जिन्दगी ये जिन दगी वे कौन हैं?
नोच डाले हैं सभी पर, आज पर कुछ बोल तो।

कायरी को भूल जा, मत भू लजा
जि़न्दगी की हर खुशी से दर्द हर, कुछ बोल तो।

सीख ले स्याही न काँटे-सी खले
मानकर दिन-सा निशा का मान कर, कुछ बोल तो।

स्वप्न मरु में आब-सा जो आ बसा
मीत मेरे आज वो खोया किधर , कुछ बोल तो।



रमेशराज की तेवरी .....12.
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पीर ये जानी नहीं, जानी सखी
आज मानी जि़न्दगी के मौत हैं मानी सखी!

अब बची शमशान के सम शान है
एक अबला की तरफ अब क्या खुशी आनी सखी!

मन न हलका, बोल अब हल का मिले
क्या फसल अब शाद पानी? बाढ़ का पानी सखी!

ढूँढते हम राह को, हमराह बिन
रात तूफानी कहे मुझसे कि तू फानी सखी!

बेकली में आज नथ भी बेक ली
है न हैरानी प्रजा हम, भूख है रानी सखी!


रमेशराज की तेवरी .....13.
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भाव जर-जर और भी जर्जर हुआ
मेघ बरसे किन्तु अन-तर और भी अन्तर हुआ।

प्यार है पर आय का पर्याय है
इस जमाने में सभी के बीच नामा, वर हुआ।

तू न दर्पन, देख दर्प न भ्रान्ति का
यूँ न शक कर मैं महँक कर आज जो शक्कर हुआ।

सिर्फ सीखा डाँट-सी खा का हुनर
जिन्दगी-भर सररहा वो नत हमारा सर हुआ।

एक आहट पास आ हटती नहीं
जो हुआ अच्छा हुआ, नाहर कुजन ना हर हुआ।


रमेशराज की तेवरी .....14.
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धूप-गाथा दर्दो-गम में घोल दी
रख निशाने पर निशा ने शाम तम में घोल दी।

अब करें बच्चे नकल उनको न कल
इक नशेड़ी ने जवानी ही चिलम में घोल दी।

एक हो अब ये कहो, मिलकर लड़ो
एकता क्यों फूट के तुमने भरम में घोल दी।

दर्द से तर अंग अब, न तरंग अब
क्यों खुशी चकलाघरों के पेचो-खम में घोल दी।

यूँ न जन नत हो कि जन्नत ही बसे
आग अब स्याही बना हमने कलम में घोल दी।


रमेशराज की तेवरी .....15.
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उत्थान ये, इत चीर ना, उत थान है
इत भोग को कुछ भी नहीं उत खीर-सी, उत क्या न है।

अब धनकुबेरों की हवस सब लीलती
उत कर कभी लगा न है, जन भर रहा लगान है।

हर साज पै वो भक्ति को धन-सा जपै
आस्था की बात है वो संत है भगवान है।

नित वासना के गीत बच्चे गा रहे
बालकों के साथ में बस्ता न अब, बस तान है।

हैं साधनाएँ दाम की खातिर सभी
पाप का सामान है जित, रावणों-सा मान है।


रमेशराज की तेवरी .....16.
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डंक वाला प्यार ही मुमकिन रहा
काटती नागिन रही पर दंश वो ना गिन रहा।

नाम जीवन, किन्तु जीव न चैन में
आदमी से ख्वाब सुन्दर सुख-समन्दर छिन रहा। 

मंजरी जब मन जरी तो हास क्या
एक दहशत बीच दह शत बार मन का दिन रहा।

फूल-से मन जर गये मंजर यही
आज हँसना-मुस्कराना सिर्फ देता घिन रहा।

रंग तब ला कर मिला जो भी मिला
कौन तबला आज बनता कौन ता ता धिन रहा।


रमेशराज की तेवरी .....17.
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मान ले इस राज में भी राज है
तू जिधर परवाज पर सुनले वहाँ पर बाज है।

प्यार में अब सब उदू बनकर खड़े
यह अजब आलोचना, ‘आ लोचनाआवाज है।

बात अव्वल, बात में अब बल नहीं
सिर्फ वानर घुड़कियों वाला बचा अंदाज है।

देह के विज्ञापनों में आज ऊँचे
वो भले है दीन-ही, पर दी नहीं तन-लाज है।

एक जलसा खूब जल-सा अब रचा
एक तपते रेत जैसी जि़न्दगी क्यों आज है?


रमेशराज की तेवरी .....18.
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देख खल-सा खो दिया पा-पा तुम्हें
रोज मेहनत की कमायी सौंप दी ला-ला तुम्हें।

मुख नहीं मैं सिर्फ सीरत देखता
और कितना बोल दूँ हर बात पै बा-बा तुम्हें।

एक गाली की तरह मत मानना
कह रहे कुछ सोच कर ही लोग अब ना-ना तुम्हें।

जश्न या मातम लगें क्यों एक-से
हर समय अब बेवजह क्यों सूझती हा-हा तुम्हें।

मध्य का जो भेद था खुल ही गया
आज कहना चाहता था भूल से का-का तुम्हें।


रमेशराज की तेवरी .....19.
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जो खिलौ ना, तू खिलौना मान मत
तू कली के भाग से बन जानवर क्यों खेलता?

मान जा मत लाज हर, मत ला जहर
आज सब सहमे खड़े हैं , तू उधर क्यों खेलता?

कर सियासत क्यों सिया’-सत को हरे
ओ दशानन सोच ले तू आग पर क्यों खेलता?

फारसी पढ़ फार-सी क्यों कर रहा
सामना कर सत्य का सच से सिहर क्यों खेलता?

इस तरह बलवान हो, बलवा न कर
अंध मजहब की जहन में आग भर क्यों खेलता?


रमेशराज की तेवरी .....20.
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मोड़ लेगी ये कहानी घाव की
लड़ रहे हैं आ सभी तो आस भी बदलाव की।

गर्जना कर गर जना आतंक को
अब उठें खामोशियों से घोर लपटें ताव की।

एकता-तरु काट ले पर का टले
एकता फिर भी रहे बातें न कर अलगाव की।

छोड़ कब्जा और कब जाना बता
मुल्क में अब तेज हैं सरगोशियाँ पथराव की।

देश को बेचै न, हम बेचैन हैं
अब करे पूजा न ये मन दासता के भाव की।
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+रमेशराज, ईसानगर , निकट-थाना सासनी गेट ,
अलीगढ-202001 , मो.-9634551630          


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