तेवरी
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खुशियों के मंजर छीनेगा
रोजी-रोटी-घर छीनेगा
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है लालच का ये दौर नया
पंछी तक के पर छीनेगा
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हम जीयें सिर्फ सवालों
में
इस खातिर उत्तर छीनेगा
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वो हमको भी गद्दार बता
कबिरा के आखर छीनेगा
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धरती पर उसका कब्जा है
अब नभ से जलधर छीनेगा
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उसको आक्रोश बुरा लगता
शब्दों से पत्थर छीनेगा
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+रमेशराज
वाह वाह वाह
ReplyDeleteगुरुवर
आपके शब्द हृदय को बेध कर छलनी छलनी कर देते है।
मैं तो कायल हो गया आपका।