मेरी कृतियाँ
Thursday, 25 May 2017
लोकशैली में तेवरी
लोकशैली में तेवरी
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सडकों पै मारपिटाई करते बर्बर आतताई
होते सरेआम उत्पात दरोगा ठाड़ो देखै |
हाथों में छुरी तमंचे जन को लूट रहे नित गुंडे
गोदें चाहे जिसका गात दरोगा ठाड़ो देखै |
गलियों में खड़े लफंगे ताकें नारीतन को नंगे
अब है चीरहरण दिनरात दरोगा ठाड़ो देखै |
देती है आग दिखाई बस्ती को फूंकें दंगाई
धर्म पै अति हिंसक जज़्बात दरोगा ठाड़ो देखै |
+रमेशराज
तेवरी
तेवरी
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जनता की थाली बम भोले
अब खाली-खाली बम भोले
|
श्रम जिसके खून-पसीने
में
उसको ही गाली बम भोले
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इस युग के सब गाँधीवादी
कर लिए दुनाली बम भोले
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अब केवल दिए सियासत ने
हकखोर-मवाली बम भोले
|
छलिया की सूरत संतों-सी
अति भोली-भाली बम भोले
|
अबला की चीख़ें सुनी नहीं
बस गाय बचा ली बम भोले
|
+रमेशराज
तेवरी
तेवरी
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खुशियों के मंजर छीनेगा
रोजी-रोटी-घर छीनेगा
|
है लालच का ये दौर नया
पंछी तक के पर छीनेगा
|
हम जीयें सिर्फ सवालों
में
इस खातिर उत्तर छीनेगा
|
वो हमको भी गद्दार बता
कबिरा के आखर छीनेगा
|
धरती पर उसका कब्जा है
अब नभ से जलधर छीनेगा
|
उसको आक्रोश बुरा लगता
शब्दों से पत्थर छीनेगा
|
+रमेशराज
तेवरी
तेवरी
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सूखा का कोई हल देगा
मत सोचो बादल जल देगा
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जो वृक्ष सियासत ने रोपा
ये नहीं किसी को फल देगा
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बस यही सोचते अब रहिए
वो सबको राहत कल देगा
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ये दौर सभी को चोर बना
सबके मुख कालिख मल देगा
|
वो अगर सवालों बीच घिरा
मुद्दे को तुरत बदल देगा
|
उसने हर जेब कतर डाली
वो बेकल को क्या कल देगा
|
+रमेशराज
तेवरी
तेवरी
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गुलशन पै बहस नहीं करता
मधुवन पै बहस नहीं करता
जो भी मरुथल में अब बदला
सावन पै बहस नहीं करता |
कहते हैं इसे न्यूज़-चैनल
ये जन पै बहस नहीं करता |
है इसीलिये वह तहखाना
आँगन पै बहस नहीं करता |
वो बोल रहा है “ ओम शांति “
क्रन्दन पै बहस नहीं करता |
वो करता धड़ से तुरत अलग
गर्दन पै बहस नहीं करता |
वो मौतों का व्यापारी है
जीवन पै बहस नहीं करता |
वो लिए सियासी दुर्गंधें
चन्दन पै बहस नहीं करता |
+रमेशराज
तेवरी
तेवरी
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जिनको देना जल कहाँ गये
सत्ता के बादल कहाँ गये
?
कड़वापन कौन परोस गया
मीठे-मीठे फल कहाँ गये
?
जनता थामे प्रश्नावलियां
सब सरकारी हल कहाँ गये
?
जो अरि का सर पल में काटें
उन वीरों के बल कहाँ गये
?
क्या सबको सांप सूंघ बैठा
प्रतिपक्षी सब दल कहाँ
गये ?
कल तक तो यहाँ कतारें
थीं
चौराहों के नल कहाँ गये
?
तुम दानी कर्ण बने क्यों
थे
अब कहते कुण्डल कहाँ गये
?
+रमेशराज
तेवरी
तेवरी
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हिंसा से भरा हुआ नारा
अब बोले धर्म बचाना है
हर ओर धधकता अंगारा अब
बोले धर्म बचाना है |
जो कभी सहारा नहीं बना
अपने बूढ़े माँ-बापों का
ऐसा हर लम्पट-आवारा अब
बोले धर्म बचाना है |
बस्ती-बस्ती भय पसर रहा,
सदआशय थर-थर काँप रहे
संवेगों का चढ़ता पारा
अब बोले धर्म बचाना है |
धरती पर बहता खून देख
‘ गौतम ‘ की आँखों में आँसू
हंसों का पापी हत्यारा
अब बोले धर्म बचाना है |
गाँधी को गाली ये देता
लेता संतों का नाम नहीं
असुर सरीखा-मतिमारा अब
बोले धर्म बचाना है |
+रमेशराज
नये शिल्प में तेवरी
नये शिल्प में तेवरी
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हम चोर लुटेरों ने घेरे
हर सू है चीख-पुकार |
इस बार ||
हम घने अंधेरों ने घेरे
दिखती न रौशनी यार | इस
बार ||
हम सेठ-कुबेरों ने घेरे
सब शोषण करें अपार | इस
बार ||
जल-बीच मछेरों ने घेरे
हम बने मीन लाचार | इस
बार ||
सत्ता के घेरों ने घेरे
हर ओर दिखें अंगार | इस
बार ||
+रमेशराज
नये शिल्प में तेवरी
नये शिल्प में तेवरी
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कोई तो किस्सा पावन हो, वृन्दावन हो
अब चैन मिले मन को कुछ तो |
तहखानों बीच न जीवन हो, घर-आँगन हो
सुख के पायें साधन कुछ तो |
अपमान नहीं अब वन्दन हो, अभिनन्दन हो
ले आ रोली-चन्दन कुछ तो |
वो चाहे हर सू क्रन्दन हो, घायल मन हो
कम करता दुष्ट हनन कुछ तो |
अब अग्नि-कथा का वाचन हो, अरिमर्दन हो
स्वर में ला तीखापन कुछ तो |
+रमेशराज
तेवरी
तेवरी
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दारू से कुल्ला बम भोले
अब खुल्लमखुल्ला बम भोले |
ईमान बेचकर इस युग में
खुश पण्डित-मुल्ला बम भोले |
हर रोज सियासत मार रही
चाँदों पे टुल्ला बम भोले |
हक़ मांगो, मौन साध जाता
जो बड़ा बतुल्ला बम भोले |
मतलब निकला तो लोग मिले
गालों के फुल्ला बम भोले |
बीबी घर आते क़ैद हुए
जो देखे डुल्ला बम भोले |
जाने किसको अब बांधेगा
रस्सी का गुल्ला बम भोले |
+रमेशराज
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